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89.1.14]
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
एक्कूणवदिम संधि जोइवि हरिणइं तिहुयणसामिहि' ।
मणि करुणारसु जायउ मिहि ॥ ध्रुवकं ॥
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संसारु धोरु चिंतंतु संतु गाणें परियाणिउं कज्जु' संचु रोहियसससूयरसंवराई अवियाणियपरमे सरगुणेण णिव्वेयहु कारण दरसिया एवं जीएण असासएण झायंतु एम मउलियकरेहिं जय जीव देव भुयणयलभाणु तुहुं जीवदयालुउ लोयबंधु तुहुं रोसमुसाहिंसाबहित्यु
दुबई - एक्कहु तित्ति' णिविसु अक्कु वि जहिं पाणिहिं विमुच्चए। तं भवविरकारि पलभोयणु महु सुंदरु ण रुच्चए ॥ छ ॥ गउ नियणिवासु एवं भणंतु । णारायणकउ मायापवंचु । जिह धरियई णाणावणयराई । कुद्धे रज्जलुद्धेण तेण । रोवंतई वेवंतई थियाई । किं होसइ परदेहें हए । संबोहिउ सारस्सयसुरेहिं । पई दिट्ठउ परु अप्प समाणु । लहुं ढोयहि संजमभरहु" खंधु । जगि पयहि बावीसमउं तित्यु |
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नवासीai सन्धि
तीन लोक के स्वामी नेमिकुमार उन हिरणों को देखकर मन में करुणा रस से पूरित हो गये । (1)
जहाँ पलभर के लिए तृप्ति होती है, किन्तु अनेक को प्राणों से मुक्त होना पड़ता है, ऐसा संसार का दुःख देनेवाला मांसभोजन मुझे अच्छा नहीं लगता। इस प्रकार घोर संसार का विचार करते हुए और यह सोचते हुए वे अपने निवास स्थान के लिए गये। ज्ञान से उन्होंने सच्चा कारण जान लिया कि वह सब नारायण के द्वारा किया गया प्रपंच है। मछली, खरगोश, सुअर और साँभर तथा दूसरे नाना वनप्राणियों को, परमेश्वर गुण को नहीं जाननेवाले क्रुद्ध राज्यलोभी उसने किस प्रकार पकड़वाया, और वैराग्य के कारण के लिए उन्हें रोते, काँपते, बैठे हुए दिखाया। इस अशाश्वत जीवन से और दूसरे के शरीर को आहत करने से क्या होगा ? वे जब इस प्रकार ध्यान कर रहे थे, तब हाथ जोड़े हुए लोकान्तिक देवों ने उन्हें सम्बोधित किया- "हे भुवनतल के भानु आपकी जय हो, हे देव आप जिएँ। आपने स्व पर को समान समझा है। आप जीवदयालु और लोकबन्धु हैं। अब शीघ्र ही संयम का भार कन्धे पर उठाएँ। आप क्रोध, झूट, हिंसा से बाहिर स्थित हैं और जग में बाईसवें के तीर्थंकर के रूप में प्रकट हुए हैं।
(1) 1 PAP गिमिसतित्तिः । शिविस तित्तिः Als. गिमिसतित्ति 9 AP पाहिं पारिंगहि S प्राणनि । 1 B की। 5. P कारण । G. APS दरिसियाई 2 APS अणवसषणु ।