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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराण
पासिउ कव्यु जेण तं हारिणु होइ अनंतदुक्खचिंतावर सो अविसंबंधु ण पावइ जहिं मिगमारणु' भोज्जु णिउत्तरं
तहु दुक्किउ बडुइ" णं हा रिणु । जो पट्टि हुयवहि तावइ । किं किज्जइ रायाणीपावइ । तेण विवाहें महुं पज्जत ं ।
घत्ता - जइ इच्छह सासयपरमगइ तो खंचह' परहणि" जंत मइ । मह मासु परंगण परिहरहु सिरिपुफ्फयंतु" जिणु संभरहु ||24||
इव महापुराणे तिराष्ट्टिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फयंतविरइए महाभव्यमरहाणुमणिए महाकब्वे जरसिंघणिहणणं" णाम अट्ठासीतिमी" परिछेउ समत्तो ॥ 88 ॥
[ 88.24.10
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण के महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का जरासन्य के निधनवाला
अठासीयाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४४॥
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बढ़ता है। जो पशुओं की हड्डियों को आग में तपाता है, वह अनन्त दुःखों और चिन्ताओं का स्वामी होता है अथवा हड्डियों का सम्बन्ध ही नहीं पा पाता (गर्भ में ही विलीन हो जाता है) है। रानी की प्राप्ति से क्या, जहाँ पशुओं का मारण और भोज्य किया जाता है, वह विवाह मेरे लिए पर्याप्त है (व्यर्थ है ) ।
घत्ता यदि तुम शाश्वत परमगति चाहते हो, तो दूसरे के धन में जाती हुई अपनी गति को रोको, मधु मांस और परस्त्री का त्याग करो और पुष्पदन्त जिनवर का ध्यान करो। त्रिभुवन के स्वामी नेमिनाथ को हरिण देखकर क्लेश हुआ और मन में करुणरस उत्पन्न हो गया ।
AP कोशांग 6. गिरण ४ BP संचहु 10 A परहण 11. Pजते । 12 फतु 19. A जरसंघणिव्याणं । 11. Seger: