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________________ 88.24.91 महाकइपुप्फवंतविरयउ महापुराणु [ 161 15 । कामपाससंकासलयाभुय पहु परिणहु चल्लिउ पत्थिवसुय । सुंदरेण सहवत्तणरूढ़े ताम तेण मणिसिबियारूढें। विरसोरसणसमद्रियकलयल वइवेदिउं अवलोडउं मिगउल। पत्ता-अहिसेयधोवसुरमहिहरिण ता सहयरु पुच्छिउ जिणवरिण । भणु भणु कंदंतई भयगयई कि रुद्ध णाणामिगसयई'' ॥23॥ ( 24 ) दुबई-ता भणियं णरेण पारद्धियदंडहयाई काणणे। ___ एयई तुह विवाहकज्जागणिवपारद्धभोयणे' ॥छ॥ इरियइं धरियई- बाहसहासें देवदेव गोविंदाएसें। आणियाइं सालणयणिमित्तें ता चिंतइ जिणु दिव्में चित्तें। जे भक्खंति मासु सारंगहं ते णर कहिं मिलंति सारंगह। खद्धउं जेहिं पिसिउं मोराणउं तेहिं ण कियउं वयणु मोराणउं । जंगलु जेहिं गसि तित्तिरयहु ते पेच्छंति ण मुहं तित्तिरयहु। जेहिं जूह विद्धसिउ रउरउ ते पाविहहिं णरउ णिरु रउरउ । कवलिउ जेण देहिदेहामिसु तह खंति कालदूयाभिसु। देवसमूहों के साथ स्वामी कामपाश के समान लताभुज राजकन्या से विवाह करने के लिए चले। अपने शुभाचरण के लिए प्रसिद्ध, मणिमय पालकी में बैठे हुए सुन्दर कुमारनेमि ने विद्रूप चिल्लाने से जिसमें कोलाहल हो रहा है, ऐसे एक बाड़े में घिरा हुआ पशुसमूह देखा।। धत्ता-जिनके अभिषेक में सुमेर पर्वत धोया गया है, ऐसे जिनवर ने अपने सहचर से पूछा- “बताओ, बताओ; आक्रन्दन करते हुए भयभीत ये सैंकड़ों पशु यहाँ क्यों रोककर रखे गये हैं ?" (24) तब उसने कहा-"आपके विवाह-कार्य में आये हुए राजाओं के मांस भोजन के लिए शिकारियों के दण्डों से आहत ये यहाँ हैं। हे देवदेव ! गोविन्द के आदेश से हजारों व्याधों ने इन्हें डराकर पकड़ा है और साग बनाने के लिए यहाँ रखा गया है।" ___तब जिन भगवान् अपने दिव्य चित्त में विचार करते हैं-जो मनुष्य सारंगों (पशुओं) का मांस खाते हैं, वे सारंग (उत्तम) शरीर कैसे पा सकते हैं ? जिन्होंने मयूरों का मांस खाया है, उन्होंने मेरा वचन नहीं माना। जिन्होंने तीतरों का मांस खाया है, वे तृप्ति बुक्त सुरति का मुँह नहीं देख सकते। जिन्होंने मृगसमूह का ध्वंस किया है, ये निश्चय हो रौरव नरक प्राप्त करेंगे। जिन्होंने शरीरधारियों के मांस का भक्षण किया है, कालदूत उसके मांस का खण्डन करते हैं। जिसने हरिण के उस माँस को खाया, उसका दुःख ऋण की तरह * पत्रिचणहुँ बलिउ। 9. ABP समुट्टिर। 11. S मृगलु। 11. 5 मृगसयई। (24) 1. A 'नृव । 2. AP पिसिर जेहिं: B जेण पिसि । AP असिउं। 1. AP Qजति।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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