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महाकइपुप्फयंतविरयन महापुराणु
188.22.14
घत्ता-णिरु सालंकार सारसरस भुयणयलि पयडसोहग्गजस। परमेसरि मुणिहिं मि हरइ मइ ण वरकइकबहु तणिय गइ ॥22॥ 13
(23) दुवई-पस्थिय माहवेण महुरावधरु गपिणु सराहहो।
सुय तेरो मरालगयगाभिणि ढोयहि णमिणाहहो ॥छ॥ तं आयण्णिवि कंसहु ताएं दिण्ण वाय गोविंदहु राएं। जं जं काइं मि णयणाणंदिरु जं जं घरि अम्हारइ सुंदरु। तं तं सव्वु तुहारउ माहव घीयइ कि जियवइरिमहाहव । अवरु वि देवदेउ' जामाइड कहिं लभइ बहुषुण्णविराइट। ता मंडवि चामीयरघडियइ पंचवण्णमाणिक्कहिं जडियइ। कंचणपंकयकेसरवण्णहि
अंगुत्थलउ छूट करि कण्हहि। जयजयसवें मंगलघोसें
दविणदाणकयविहलिवतोसें। णाहविवाहकालि पर ससि रवि आय सुरासुर विसहर खयर वि। 10 पंडुरदेवंगई वरणियसणु कइयमउडमणिहारविहूसणु। दंडाहयपडुपडहणिणाएं
पच्चंतें सुरवरसंघाएं।
घत्ता-जिसका भुवनतल में सौभाग्य और यश विख्यात है, जो श्रेष्ठ अलंकारों से सहित और सरस है, ऐसी वह परमेश्वरी मुनियों के भी मन को हरण करती है, मानो श्रेष्ठ कवि के काव्य की गति हो।
(23) मथुरा के राजा की धरती पर जाकर माधव ने उग्रसेन से प्रार्थना की-तुम्हारी हंसगति-गामिनी कन्या शोभाशाली नेमिनाथ के लिए दीजिए।
यह सुनकर कस के चाचा राजा उग्रसेन ने गोविन्द के लिए वचन दिया-मेरे घर में जो जो नेत्रों को आनन्द देनेवाला है, जो जो सुन्दर है; हे माधव ! वह सब तुम्हारा है। शत्रुओं के महायुद्धों को जीतनेवाले हे कृष्ण ! कन्या से क्या ? और फिर अनेक पुण्यों से शोभित देवदेव जैसा दामाद कहीं मिल सकता है ? तब स्वर्णनिर्मित तथा पंचरंगे मणियों से विजडित मण्डप में स्वर्णकमल और केशर के रंगवाली कन्या के हाथ में, जय जय शब्द मंगल घोष एवं द्रव्यदान द्वारा विकल लोगों को सन्तोष-दान के साथ अँगूठी पहना दी। स्वामी के विवाह के अवसर पर मनुष्य, शशि, सूर्य, सुर-असुर, विषधर और विद्याधर आये। सफेद देवांग उत्तम वस्त्र, कटक, मुकुट और मणिहारों के भूषणों, दण्डों से आहत उत्तम नगाड़ों के शब्दों से नाचते हुए
5. Pजहबई : K जयवयः। 6. AP भि। 7. P संपण्णी। 8. Pराइमइ। 9. P तणि गई।
(23) 1. AP पटिज। 2. AHPS मरालगइगामिणि। 3. AP तुम्हारउ14. B"ययरि। 5. 5 देवदेवु। 6. नमूहु किर। 7. A देवंगंबर।