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88.22.131
महाकइपुष्फयंतबिरयउ महापुराणु
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घत्ता-हलहर दामोयर बे वि जण ता मतिमंतविहिदिण्णमण"। जिणबलपविलोयणगलियमय ते चित्तकुसुममहिभवणु गय ॥21।।
(22) दुवई-मंतिउ मतिमंतु गोविंदें लहु काणि णिहिप्पए ।
कुलवइ सत्तिवंतु तेयाहिउ जइ दाइउ ण जिप्पए ॥छ॥ पई मि मई मि सो समरि जिणेप्पिणु भुजेसइ महिलच्छि लएप्पिणु । तं णिसुणिवि संकरिसणु घोसइ' णारायण णउ एहउँ होसइ। चरमदेहु भुयणत्तयसामिउ सिवएवीसुउ सिवगइगामिउ। परमेसरू परु णउ संतावइ रज्जु अकज्जु तासु मणि भावइ। रज्जु पंथु दावियभयजरयह धूमप्पहतमतमपहणरयहं। रज्जें जडु माणुसु वेहविय अम्हारिसहं रज्जु गउरवियउं। जिणु पुणु तिणसमाणु मणि मण्णइ रायलच्छि दासि व अवगण्णइ। जई पेच्छइ णिव्वेयह कारणु तो पंचिंदियभइसंघारणु': करइ णाहु तवचरणु णिरुत्ता ता महुमहणे कवडु णिउत्तउं । तणुलायण्णवण्णसंपण्णी
"जयवइदेविउयरि उप्पणी' । मग्गिउ उग्गसेणु सुवियक्खण रायमइ त्ति पुत्ति सुहलक्खण। _____घत्ता--मन्त्रियों की मन्त्रणाविधि में अपना मन देनेवाले वे दोनों भाई, नेमीश्वर की शक्ति देखकर, गलितमद होते हुए अपने चित्रकुसुम मन्त्रणागृह में गये।
(22) शीघ्र ही कृष्ण ने मन्त्रिमन्त्र का विचार किया कि यदि कुलपति शक्तिशाली और तेजाधिक है और यदि वह स्वगोत्री से नहीं जीता जा सकता, तो शीघ्र ही उसे वन में स्थापित करना चाहिए। वह मुझे और तुम्हें युद्ध में जीतकर, धरती की लक्ष्मी लेकर भोग करेगा।
यह सुनकर संकर्षण घोषित करता है-हे नारायण ! ऐसा नहीं होगा। वे चरमशरीरी और भुवनत्रय के स्वामी हैं, शिवादेवी के पुत्र और शिवगति को जानेवाले हैं। परमेश्वर दूसरे को नहीं सता सकते। उनके मन में राज अकार्य लगता है। राज्य-भय और बुढ़ापा धूमप्रभ और तमःप्रभ नरकों का पथ दिखाने वाला है। राज्य से मूर्ख मनुष्य ही अपने को वैभवशाली समझते हैं। उन जैसे लोगों के लिए राज्य क्या गौरवान्वित करनेवाला है? जिन भगवान् तो उसे अपने मन में तृण के समान समझते हैं, राज्यलक्ष्मी को दासी के समान समझते हैं। यदि वह पाँच इन्द्रियरूपी भटों का संहार करनेवाले निर्वेद का कोई कारण देखते हैं, तो निश्चय ही स्वामी तप ग्रहण कर लेंगे। इस पर श्रीकृष्ण ने अपने मन में एक कपटयुक्ति सोची। उन्होंने जयवती देवी के उदर से उत्पन्न, शरीर के लावण्य और वर्ण से पूर्ण, शुभलक्षणा राजमती नाम की कन्या उग्रसेन से माँगी।
13. AP बेणि जण। [4. AP "मंदिण्णमण। 15. A जिणवर ।
(22) I. APS भासह। 2.। हाचियउ। ३. ते रापाणुः सणसमाणु। 4.
पंचेंदिय ।