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महाकइपुष्यंतविरउ महापुराण
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दुबई - पई रइयाई जाई परिवाडिइ हयजणसवणधम्मई ।
एक्कहिं खणि कयाइं बलवंतें तिष्णि मि' तेण कम्मई ॥छ॥ ते असेसु वि जणव भग्गर । णिप्पीलिउ ण चीरु वरि घित्त ं । जणि पयडंति जं पि पच्छष्णउं । वणि तेरचं संखाऊर्णु । किह महुं उपरि घल्लहि णिवसणु । इय एहजं गेमिसें विलसिॐ । उ दाइज्जथोत्ति' कासु वि सुहुं । मच्छरु तेत्यु भाय णउ किज्जइ । पायहिं जासु" पड़ड़ आहंडलु । जो सत्त वि सायर उत्थल्लइ " | कुसुमसयणु तद्दु फणिसयणुल्लउं । किं सुहड़तें नियमहि नियमणु ।
सिंथसंखसरु जो तहिं णिग्गउ सच्चभाम' पवियंभिय एत्तिउं महिलहं पथि मंतणेउष्णउं चावपणाम विसरजूरणु अवरु भणिउं गउ हरि संकरिसणु तं णिसुणिवि हियउल्लउं कलुसिउं ता कण्हेण कयउं कालं मुहुं बलएवेण भणिउं लइ जुज्जइ जसु ते कंपइ रविमंडलु सगिरि ससायर महि उच्चल्ल जासु गाउँ जगि पुज्जु पहिल्लउं खुम्भ 2 संखु सरासणु पिंजणु
[ 88.21.1
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लोगों के श्रवणधर्म को नष्ट करनेवाले जो कार्य परिपाटी से (क्रम से) तुमने किये थे, उस बलवान ने वे तीनों कार्य एक क्षण में सम्पन्न कर दिये । प्रत्यंचा और शंख का जो शब्द हुआ उससे सम्पूर्ण जनपद नष्ट हो गया । सत्यभामा ने केवल इतना किया था कि उसने उसका वस्त्र धोया नहीं, बल्कि फेंक दिया। स्त्रियों में मन्त्रनिपुणता नहीं होती। जो चीज गुप्त होती है, वे उसे भी प्रकट कर देती हैं। उसने तुम्हारा धनुष का चढ़ाना, नागशय्या का झुकाना और शंख का फूँकना प्रकट कर दिया, और यह भी कहा कि वह (नेमिनाथ) हरि और संकर्षण नहीं है, फिर मेरे ऊपर अपना वस्त्र क्यों फेंका ? यह सुनकर नेमीश्वर का हृदय कलुषित हो गया। वह उनकी चेष्टाएँ हैं ! तब कृष्ण का मुँह काला हो गया। अपने सगोत्री की प्रशंसा में किसी को भी सुख नहीं मिलता। बलदेव ने कहा- यह ठीक है। हे भाई, इसमें मत्सर नहीं करना चाहिए। जिसके तेज से रविमण्डल काँप उठता है, जिसके चरणों में इन्द्र झुकता है। पहाड़ और समुद्र सहित धरती उछल पड़ती हैं, जो सातों समुद्र पार कर सकता है, जिसका नाम विश्व में प्रथमतः पूज्यनीय है, उसके लिए नागशय्या फूलों की सेज है। यदि वह शंख फूँककर क्षुब्ध करता है और धनुष चढ़ाता है, तो तुम अपना मन सुभटव से क्यों नियमित करते हो ?
( 21 ) 1 BSF 2 3 सिन्ध 3 8 सच्चहामः । सच्चिराम । 4 A पिपीलिकण 55 भणावणु। R. AP बसिउ17 13PS दायज । AAPS पडइ जासु 16. PS ओल्ड LL. ABPS णामु। 12. ABS सुरभ