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________________ 88.20.13] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [ 157 (20) दुबई–चप्पिउं कुप्परेहि फणिसयणु पणाविउं वामपाऍणं। धणु करि णिहिउं संखु आऊरिउ जगु बहिरिउं णिणाऍणं ॥छ॥ महि थरहरिय' डरिय णिग्गय फणि गयणंगणि कपिय ससि दिणमणि। बंधविसट्टइं सरिसरतीरइं पडियई पुरगोउरपायारई। मुडियखंभ' भयवस गय गयवर गलियणिबंधण गट्ठा हयवर । कपणदिण्णकर महिणिवडिय पर पडिय ससिहर सधय णाणाघर । हरिणा रयणकिरणविप्फुरियहि उप्परि हत्थु दिण्णु कडिछुरियहि । हल्लोहलउ णयरि संजायउ । जंपइ जणु भयकंपियकायउ। वट्टइ पलयकालु कहिँ गम्मइ किं हयदइयह पसरइ दुम्मइ। तहिं अवसरि किंकरु गउ तेत्तहि अच्छइ धरि महुसूयणु' जैतहि। तेण तेत्थु पत्याउ लहेप्पिणु दाणवारि विपणविउ णवेप्पिणु। घत्ता-तुह किंकर बलिमड्डइ घरिवि घरि णेमिकुमारें पइसरिवि। धणु णावि जलवरु पूरियउ सयणयलि महोरउ चूरयिउ ॥20॥ 10 (20) उन्होंने हथेलियों से नागशय्या को चाँप दिया, बायें पैर से धनुष को झुका दिया एवं शंख फूंकने से जग बहरा हो गया। धरती काँप उठी, डर कर शेषनाग बाहर निकल आया। आकाश के आँगन में सूर्य और चन्द्रमा काँप गये। नदियों और सरोवरों के बाँध टूट गये। नगर-गोपुर और परकोटे गिर पड़े। भयभीत गज आलानस्तम्भ को मोड़कर भाग गये। खुल गये हैं बन्धन जिनके, ऐसे अश्व भाग गये। कानों पर हाथ देकर लोग धरती पर गिर पड़े। अनेक घर अपने शिखरों और ध्वजों के साथ धराशायी हो गये। तब रत्नकिरणों से चमकती हुई अपनी कमर की छुरी पर श्रीकृष्ण ने अपना हाथ रखा। नगर में कोलाहल मच गया। डर से काँपते हुए शरीरवाले लोगों ने कहा-प्रलय काल आ गया है। अब कहाँ जाया जाये ? हतदैव की यह दुर्मति क्यों हो रही है : उस अवसर पर एक किंकर वहाँ गया, जहाँ श्रीकृष्ण अपने घर में थे। वहाँ पर अवसर पाकर उसने श्रीकृष्ण से प्रणामपूर्वक निवेदन किया पत्ता-तुम्हारे अनुचर को जबर्दस्ती पकड़कर और आयुधशाला में प्रवेश कर कुमार नेमि ने धनुष चढ़ा दिया, शंख फूंक दिया और शय्यातल पर नागराज को कुचल दिया। कर। 5. Simits in रयण | HAPS "दइवहो। 7. B महमूअणु। (20) 1. PS कोप्परहि। 2. Aरहग्यि। 3. Pomits "खंभ। 4. R. Afडाए। 9. APणापित
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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