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________________ 156 ] महाकइपुप्फयंतविरय महापुराणु 188.19.3 देवें चारुचीरु परिहते तरलतारणयणेहि णियतें। पुणु वि तेण तहि कील करतें उप्परि पोत्ति वित्त विहसतें। गिप्पीलहि कडिल्लु परिबोल्लिय' थिय सुंदरि णं सल्ले सल्लिय। णारिउ णउ मुति पुरसंतर जो देवाहिदेउ सई जिणवरु । जासु पायधूलि वि वंदिज्जइ तहु ओल्लणिय किं ण पीलिज्जइ। ता देवेण भणिउ णउ मण्णिउं पेसणु दिण्णउं किं अवण्णिउं। भणु भणु सच्चभामि' सच्चउं तुहूं किं कालउं किउं जरकमलु व मुहं। ता वीलावसमउलियणयणइ उत्तउं उत्तरु तहु ससिवयणइ। बहुकल्लाणणाणवित्यिण्णई जइ वि तुम्ह पुण्णई संपुण्णइं। तो वि ण एहु' महापहु जुज्जइ एएं महुं सरीरु णिरु झिज्जइ । कि पई संखाऊरणु रइयउं किं सारंगु पणामिवि" लइयउं । किं तुहं फणिसयणयलि पसुत्तउ जें कडिल्लु मज्झुप्परि पित्तउं। होसि होसि भत्तारहु भायरु कि तुहुँ देवदेउ दामोयरु। घत्ता-इय जं खरदुब्बयणेण हउ तं लग्गउ तहु अहिमाणमछ। __णारायणपहरणसाल जहिं परमेसरु पत्तउ झत्ति तहिं ॥19॥ हुई स्त्रियों ने जलक्रीडा के जल से गीला कर दिया। स्वच्छ और चंचल नेत्रों से उन्हें देखते हुए तथा हँसते उन्होंने (नेमि ने) उनके ऊपर अपनी धोती फेंक दी और कहा-मेरा कटिवस्त्र निचोड़ दो। सुन्दरी सत्यभामा वेदना से पीड़ित होकर रह गयी। नारियाँ पुरुषों का अन्तस् (हृदय) नहीं समझती। जो देवाधिदेव स्वयं जिनवर हैं, जिनके चरणों को धूल की भी वन्दना की जाती है, उसकी धोती क्यों नहीं निचोड़ी जाती ?" तब देव ने कहा- "तुमने (मेरी बात) नहीं मानी। मैंने आदेश दिया था, उसकी अवहेलना क्यों की ? हे सत्यभामा ! तुम सच-सच बताओ, तुमने पुराने कमल की तरह अपना मुख पीला क्यों किया ?" तब लज्जा के कारण अपनी आँखें बन्द करती हुई चन्द्रमुखी सत्यभामा ने उन्हें उत्तर दिया___ यद्यपि तुम्हें बहुकल्याण और ज्ञान से विस्तीर्ण पुण्य प्राप्त है, फिर भी यह (आपके) महाप्रभु होने योग्य नहीं है। इससे (तुम्हारी धोती धोने से) मेरे शरीर को तकलीफ होती है। क्या तुमने शंख फूंककर बजाया ? क्या तुमने धनुष झुकाया ? क्या तुम नागशय्या पर सोये ? तो फिर कैसे तुमने अपना कटिवस्त्र मेरे ऊपर फेंका ? होगे होगे, तुम मेरे पति के भाई ? क्या तुम देव दामोदर हो ? __घत्ता-जब उसने (सत्यभामा ने) तीव्र दुष्ट वचनों से नेमिकुमार को आहत किया, तो वह बात उस स्वाभिमानी को लग गयी। और जहाँ पर श्रीकृष्ण की आयुधशाला थी, वह परमेश्वर शीघ्र वहाँ पहुँचे। 2. लाल। 3. BAS. विपीलेहि। 4. AS एल्बोल्लिय; BAIs पोल्लिय; P पच्चेल्लिय। 1. 5 देवु। 6. ABPS उन्लाणय। 7. BP सच्चहामे। K. I" । 9. 13 जिज्जइ। 10. 25 पणायेदि । । 1. AP कि फणीससयणयले पसुत्तउं; 5 किं पई फणि 1 12. 5 देवदेव। . लग्गउ तहो मणे अहिमाणगउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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