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________________ 1541 महाकइपुष्फर्यतविरयउ महापुराणु [88.17.7 बलएवहु माणवमणहारिहि अट्ठसहासई मंदिरि' णारिहिं। रयणमाल गय मुसलु सलंगलु च स्यणाई तासु बहुभुयबलु । कसण धवल बेण्णि वि णं जलहर पुरि दारावइ गय हरि हलहर। अहिसिंचिउ उविंदु सामंतहिं गिरि व धणेहिं णवंबु सवंतहिं। बद्धउ पट्टु विरेहइ केहउ तडिविलासु वरमेहहु जेहङ। दिव्वकामसोक्खई भुंजतहु णमिकुमारहु तहिं णिवसंतहु। अण्णा दिवसि" कसमहुवइरिउ णियअंतेउरेण परिवारिउ । घत्ता--पप्फुल्लवेल्लिपल्लवियवणि गयपाउसि सरयसमागमणि। गउ जलकेलिहि हरि सीरधरु णामेण मणोहरु कमलसरु ॥17॥ 15 (18) दुवई-सोहइ चिक्कमंति जहिं चारु सलील मरालपतिया। ___णं रुंदारविंदकयणिलयहि' लच्छिहि देहकठिया ॥छ॥ पोमहि णियबहिणियहि गवेसिव णं चदेण जोण्ह संपेसिय। उड्डिय भमरावलि ताहि अंगें अयसकित्ति णं कित्तिहि संगें। बहुगुणवंतु जइ वि कोसिल्ल जइ वि सुपस्तु सुमित्तु संसल्लउँ । 5 तो वि णलिणु" सालूरे चप्पिङ जडपसंगु किं ण करइ विप्पिङ । पृथ्वी के नरेन्द्र गोविन्द को साधकर सिद्ध हुईं। बलदेव के घर में मानव-मन का हरण करनेवाली आठ हजार रानियाँ थीं। उनके रत्नमाला, गदा, मूसल और हल ये चार महारत्न थे। दोनों ही महान् बाहुवाले, मानो काले और गोरे (सफेद) मेघ हों । नारायण और बलभद्र द्वारावती नगरी गये। सामन्तों ने श्रीकृष्ण का अभिषेक उसी प्रकार किया, जिस प्रकार नवजल बरसाते हुए मेघ पहाड़ का करते हैं। बाँधा हुआ राजपट्ट ऐसे शोभित होता है, जैसे मेघों में विद्युविलास हो। दिव्य कामसुखों को भोगते हुए नेमिकुमार वहाँ रहने लगे। किसी दिन कंस और मधु के शत्रु कृष्ण अपने अन्तःपुर के साथ घिरे हुए थे__घत्ता-वर्षा बीतने और शरद् के आने पर खिली हुई लताओं और पल्लवोंवाले वन में श्रीधर नामक सुन्दर कमल सरोवर में वे जलक्रीड़ा के लिए गये। (18) वहाँ पर सुन्दर और लीलापूर्वक चलती हुई हंसों की कतार ऐसी शोभित थी, मानो विशाल कमलों में निवास करनवाली लक्ष्मी के शरीर का कण्ठा हो, मानो अपनी बहिन लक्ष्मी को खोजने के लिए चन्द्रमा ने ज्योत्स्ना को भेजा हो। उनके शरीर से उड़ती हुई भ्रमरावली (ऐसी शोभित थी) मानो कीर्ति के साथ अयश की कीर्ति उड़ रही हो। यद्यपि कमल कर्णिकायुक्त और बहुगुणों से युक्त हैं तथा अच्छे मित्र के समान पत्तों और मकरन्दवाले हैं, तो भी वह मेंढक के द्वारा खा लिये जाते हैं। जड़ प्रसंग (मूर्ख की संगति, जल १.परिणारिहि । *. AP धवल ण वणि चि। 9. Somits "वर'। 10. 2 दियहि । (18) I. B कांगतहि णियलाह hut gloss कृतनिलयायाः । 2. ADS देहतिया। 3. B ता; 5 तहें। 4. B सुमत्तु । 5. Bणलिण।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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