SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 88.17.6] महाकइपुष्पयंतविरयउ महापुराणु [ 153 मागहु बरतणु समई पहासें साहिय क्रयदिग्विजयविलासें। सुरसरिसिंधुवकंटणिकेयई मेच्छरायमंडलई अणेयई। सिरिविरइयकइक्खविक्नेवें णिज्जियाइं पारायणदेवें। विप्फुरंत णहयलि पेसिय सर विजाहरदाहिणसेंढीसर। जिणिवि गरुडसोहंतधयग्नें महि तिखंडमंडिय जिय खग्गें। णियपयमुद्विय दप्युल्ललियहं चूडामणि णाणामंडलियाँ' । घत्ता-कोत्थुयमाणिक्कु दंडु अवरु गय संखु चक्कु धणुहु वि पवरु। सिद्धई सहुं सत्तिइ सत्त तहु रयणई मेइणिपरमेसरहु ॥16॥ ( 17 ) दुवई-अट्ठसहास जासु वरदेवह मणहररिद्धिरिद्धहं । सोलह बलणिहित्तदिण्णायहं रायहं मउडबद्धहं ॥छ।। 'कइयवकरणालिंगणणिलयह परि निराई सहादं वितरह। रुप्पिणि सच्चहाम जंबावइ पुणु सुसीम लक्खण मंधरगइ। हावभावविभमपाणियणइ सई गंधारि गोरि पोमावइ। एयउ सा अट्ठमहाएविउ गोविंदहु। जिसने दिव्य विजय-विलास किया है, ऐसे श्रीकृष्ण ने प्रभास के साथ मागध, वरतनु आदि को सिद्ध कर लिया। गंगा और सिन्धु नदियों के उपकण्ठों पर जिनके घर हैं, ऐसे अनेक म्लेच्छराज मण्डलों को, श्री (विजयश्री) द्वारा जिनपर कटाक्ष-विक्षेप किया गया है, ऐसे नारायण देव ने जीत लिया। जिनके द्वारा प्रेषित तीर आकाशतल में चमकते हैं, जिनके ध्वज का अग्रभाग गरुड़ से शोभित है, ऐसे श्रीकृष्ण ने विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के राजाओं को जीतकर, अपनी तलवार से तीन खण्ड धरती जीत ली। दर्प से उद्धत नाना मण्डलीक राजाओं के चूड़ामणि को अपने पद (पैर) से अंकित कर दिया। __घत्ता -कौस्तुभमणि, दण्ड, गदा, शंख, चक्र, प्रवर धनुष और शक्ति-ये सात रत्न धरती के स्वामी को सिद्ध हुए। (17) सुन्दर ऋद्धिनों से सम्पन्न श्रेष्ठ देवों और शक्ति से दिग्गजों को परास्त करनेवाले, मुकुटबद्ध उन राजाओं की (बलभद्र और नारायण की क्रमशः) आठ हजार और सोलह हजार रानियाँ थीं तथा मायाचारपूर्ण आचरण और आलिंगन की वर उन वनिताओं के उत्तने ही घर थे। रुक्मणि, सत्यभामा, जाम्बवती, सुसीमा, मन्थरगति लक्ष्मणा, हावभाव और विभ्रमरूपी पानी की नदी सती गान्धारी, गौरी और पद्मावती ये आठ महादेवियाँ :. A धुकंठ; 15 "सेंधुवकट" | 6. BS "सोहंति 1 7. "मंडलियई। 8. P कोत्युप्त । ५. ' माणिकक। 1. B मि पचरु: । वि अवम् । (17) 1. देवरं । 2. BK कचय" hut glass ink कैतव कइविय। I. A नणलियहं । 4. A तेत्तिया जेहे वरविलय तेत्तिय सहसई वरविलयह। i. 1 मई 1. Road
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy