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________________ 152 ] महाकइपुण्यवंतविरय महापुराणु जाम ण भिंदमि सत्तिइ तुह उरु । वसुएउ वि पाइक्कु महारउ । विज्जहि ओसरु सरु" पइसरु" मा जमपुरु राउ समुहविजउ कम्मारउ तुहुं घई तासु हरिणु व सीहें हुं रणु इच्छहि खल खज्जिहिसि पाव पावें तुहुं ता हरिणा रहचरणु विमुक्कउं तजहि । भिच्चु होवि" रायत्तहु" बंछहि । णासु णासु मा जोयहि महुं मुहुं । रविबिंबु व अत्थयरिहि ढुक्कउं । घत्ता - णरगाहहु छिण्णउं सिरकमलु णावइ रहंगु " णवकुसुमदलु । थि हरि हरिसें कंटइयभुज पवरच्छरकोडीहिं थु ||15|| ( 16 ) दुवई - हइ जरिसंधराइ' महुमहसिरि रुंजियमहुयरालओ' । सुरवरकरविभुक्कु णिवडिउ णववियसियकुसुममेलओ ॥छ कउ कलयलु पहवई जयसूरई । दहधणुतणुउच्छेहपमाणें । णवघणकुवलयकज्जलवण्णें । रणभरधरणधोरथिरकंधें । अरिणरिंदणारीमणजूरई पायपोमपाडियगिव्वाणें चिरभवचरियपुण्णसं पुण्णें एक्कसहस व रिसाउणिबंधें 88.15.7 10 5 हो रहे हो ? हे मित्र ! आज तुम जीवित कहाँ जा सकते हो ? जब तक मैं शक्ति से तुम्हारे उर का छेदन नहीं करता, तब तक यहाँ से हट जाओ, वमपुर में प्रवेश मत करो। समुद्रविजय मेरा काम करनेवाला (सेवक ) हैं, वसुदेव भी मेरा अनुचर है। तू उसका पुत्र व्यर्थ क्यों गरजता है ? ढीठ ! धरती माँगते हुए तुझे लज्जा नहीं आती ? हरिण की तरह तू सिंह के साथ युद्ध की इच्छा करता है, नौकर होकर राजछत्र की इच्छा करता है ? रे दुष्ट ! पाप पाप के द्वारा तू खाया जाएगा। भाग, भाग, मेरा मुँह मत देख।" इस पर श्रीकृष्ण ने चक्र चला दिया, जैसे सूर्यबिम्ब अस्तगिरि पर पहुँच गया हो । बत्ता - उसने नरनाथ का सिररूपी कमल काट दिया, मानो चक्रवाक ने नवकुसुमदल को छिन्न कर दिया हो । हर्ष से हरि की भुजाएँ पुलकित हो गयीं। करोड़ों श्रेष्ठ अप्सराओं ने उनकी स्तुति की। ( 16 ) जरासन्ध के मारे जाने पर, जिस पर मधुकर समूह गुनगुना रहा है ऐसे श्रीकृष्ण के सिर पर देवों के द्वारा मुक्त नवकुसुम-समूह बरस पड़ा। शत्रु राजाओं की स्त्रियों के मन को सतानेवाले आहत जय -नगाड़ों का कल-कल होने लगा, जिसके चरण-कमलों में देव मस्तक झुकाते हैं, जिसके शरीर की ऊँचाई दस धनुष प्रमाण हैं, जो पूर्वजन्म में आचारित पुण्य से परिपूर्ण है, जो नवघननील कमल और काजल के समान कृष्ण है, जिसकी आयु का बन्ध एक हजार वर्ष है, जिसके स्थूल कन्धे युद्ध का भार उठाने में समर्थ हैं, 9. P ऊस | 10 8 पट्टमर 11 तह पहुं तासुः ॥ घइ घरि 12. BS होइ। 15. AS Als, रायत्तणु। 14, APS अत्यइरिहि । 15. A णाई 16. AP Jet ( 16 ) 1. 13 जनसंधु: P जरनॅथे जरमेध 25 संजिय। 3. [ "विमुक्का । 4. PS खंधें ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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