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________________ 88.15.61 महाकइपुष्फयतविरयउ महापुराणु [15] केसरि व्य दुद्धरो करगणक्खराइओ सो वि तस्स संमुहो समच्छरो पधाइओ। ता महीसरेण झत्ति पाणिपल्लवे कयं "लोयमारेणक्कबिंबसंणिह' सचक्कयं। 5 उत्तमेण कुंकुमेण चंदणेण चच्चियं भामियं करेण वीरदेहरत्तसिंचियं। 'गुत्थपंचवपणपुष्फदामएहिं पुज्जियं राहियामणोहरस्स संमुहं विसज्जियं। 'चंडसूररस्सिरासिचिच्चियच्चिसच्छह कालरूवभीमभूयमच्चुदूयदूसहं । वेरितासयारि भूरिभूइभाइ भासुरं भीयजीयभट्टचेद्रुतकिणरासुरं"। 10 घत्ता-णाणामाणिक्कहिं वेयडि! तं रिउरहंगु हरिकरि चडिउं। णियकंकणु तियणसुंदरिए णं पाहुडु पेसिउं जयसिरिए ॥14॥ ( 15 ) दुवई-तं हत्थेण लेवि दुब्बोल्लिउ पुणरवि रिउ णराहिओ' । __ अज्ज वि देहि पहवि मा णासहि अणुणहि सीरि सामिओ' ॥छ॥ तं णिसुणवि वुत्तु' मगहसें आरुष्टुं कयंतभडभीसें। तुहं गोवालु बालु पउ" जाणहि संद होवि कामिणियणु माहि । जड़ किं सिहि सिहाहिं संतावहि महु अग्गइ सुहडत्तणु दावहि । चक्के एण कुलालु व मत्त अज्जु मित्त कहिं जाहि जियंतउ । सिंह के समान दुर्धर कराग्र में स्थित खड्गरूपी नखों से शोभित वह भी ईर्ष्या से भरकर उसके सम्मुख आये। इतने में राजा जरासन्ध ने शीघ्र ही अपने पाणिपल्लव में लोक का नाश करने के लिए प्रलयार्क-बिम्ब के समान अपना चक्र ले लिया जो उत्तम केशर और चन्दन से चर्चित था। वीरों के शरीर के रक्त से सिंचित था, गुंथी हुई पंचरंगी मालाओं से पूजित था, राधा के प्रिय कृष्ण के सम्मुख छोड़ा। वह प्रचण्ड सूर्य-रश्मिराशि की अग्नि की ज्वालाओं के समान था, काल के रूप के समान भयंकर, भूतों और मृत्युदूत की तरह दुःसह्य, शत्रुओं के लिए त्रासदायक, प्रचुर विभूतियों से भास्वर, भीतजीवों की भ्रष्ट चेष्टाओं से किन्नरों और असुरों को डरानेवाला, तथा-- ___ घत्ता-तरह-तरह के माणिक्यों से जड़ा हुआ था। वह चक्र श्रीकृष्ण के हाथ पर ऐसे चढ़ गया, मानो त्रिभुवन की सुन्दरी विजयश्री ने अपना कंगन उपहार में भेजा हो। (15) उस चक्र को हाथ में लेकर उन्होंने फिर से उस शत्रु राजा से कहा--"तुम आज भी धरती दे दो, अपने को नष्ट मत करो, स्वामी बलभद्र से प्रार्थना करो।" यह सुनकर क्रुद्ध और यमभट की तरह भयंकर मागधेश ने कहा- “गोपाल ! तुम नहीं जानते हो, नपुंसक होकर कामिनीजन को मानते हो। हे मूर्ख ! क्या अग्नि अग्नि से शान्त होती है ? तुम मेरे सामने सुभटपन बता रहे हो, इस चक्र से तुम कलाल की तरह मतवाले 5. Als पारणक्क" hexinst Mss. misunderstanding the gloss. . A "विधासणिण पिसक्कयं। 7. A गुत्त: PS गुय । 9. BP "पुष्प'। 9.A चंडसूररासि : । चंडसोयराप्ति"। 10. A सच्छि। 11. A "मकिट्ठणकिणरा। 12. B विडिय। (15) 1. PS गरियो। 2. । पुरुइ। 3. PS पत्थियो। 1. P पउत्तु। 5. Bण हु। 5. AP चक्केणेण1 7. म मित्तु। 8. AP अघित्तर।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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