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________________ 1501 महाकइपुप्फयंतविण्यउ महापुराणु | 88.13.9 हरिकरिबरे किंकरे छत्तदंडम्मि चावम्मिा चिंधम्मि जाणे विमाणम्मि कण्हेण जुझे रिऊ” दीसए ॥4॥ विहुणइ सयलं बलं जाव "फुटुंतसव्वट्टिअंगेहि ताराले चलंतुग्गपक्खिदकेऊहरो संठिओ ॥5॥ ___ फणिसुरणरसंथुओ सूरसंगामसंघट्टसोढो महामंतवाईसरो तप्पहावेण णिण्णासिया ॥6॥ जलहरसिहरे खलती चलंती घुलती तसंती रसती सुसंती चलायासमग्गे 15 सुदूर गया देवया ॥7॥ पत्ता-हरिदसणि णहयलि दिण्णपय जं बहुरूविणि णासेबि गय। तं परतरुणीगलहारहर पहुणा अवलोइय णिययकर ॥13॥ दुवई-पभणइ कोवजलणजालारुण दिवि घिवंतु माहये। किं कीरइ खलेहिं भूएहि थिएहिं गएहिं आहवे छ। तेण दुछिओ' हरी नृपिंडमुंडखंडणे किं बहूहि किंकरहिं मारिएहिं भंडणे। होइ भू हए णिवे ण बुझसे किमेरिसं एहि कङ्क धिट्ट दुट्ठ पेच्छ मज्झ पोरिसं। घोड़े, हाथी, अनुचर, छत्रदण्ड, चाप, पताकायान और विमान पर शत्रु को देख लिया। और जब तक वह विद्या नष्ट होती हुई हड्डियों और अंगों के साथ समस्त सेना को नष्ट करती है, तब तक चंचल और उग्र गरुड़ को धारण करनेवाले वह (श्रीकृष्ण) वहाँ स्थित हो गये, जहाँ नागों, असुरों और मनुष्यों से संस्तुत, शूरवीरों के संग्राम का संघर्ष करने में समर्थ और महामन्त्र वादीश्वर था। उसके प्रभाव से नष्ट होती हुई वह विद्यादेवी मेघशिखरों पर स्खलित होती हुई, गिरती हुई, त्रस्त होती हुई, चिल्लाती हुई और सिसकती हुई, चलाकाश के मार्ग से कहीं दूर चली गयी। घत्ता-हरि को इसनेवाली वह बहुरूपिणी विद्या जब आकाश में अपने पैर रखती हुई कहीं चली गयी, तब राजा ने शत्रुतरुणियों के गले के हारों का हरण करनेवाले अपने हाथ देखे । क्रोधाग्नि की चालाओं से अरुण अपनी दृष्टि माधव पर डालते हुए जरासन्ध कहता है-युद्ध में स्थित अथवा गये हुए भूतों से क्या किया जाये ? उसने हरि की निन्दा की कि मनुष्यों के धड़ों और सिरों का खण्डन करनेवाले युद्ध में बहुत से अनुचरों को मारने से क्या लाभ। राजा के मारे जाने पर धरती अपने अधीन हो जाएगी, क्या तुम इतना नहीं जानते ? हे कष्ट, ढीठ दुष्ट ! आ, और मेरा पौरुष देख । तब 15. Kunits चावम्मि विधाम। 16. P कण्हेण कुर्तण जुझेवि रिऊ। 17. BK रिठ। 18. BKP विहुणेई। 19. Dपुटुंत; P फुट्ठति। 20. B सयष्टिअंगम्हि। 21. A केऊरहो; P°केकरहे। 22. A फणिणरतुर । 28. APS संगाम'; P संगामि संघाविओ सो महापुण्णणेमीसरी तपशा" in second hand. 24, A वलंतो। 25. B तहु दंमाण in seccand hand; S जिणसणि। (14) I. A टोच्छिओ B दुछिओ; 6 दोरिओ। 2. ABP णिपिड । 3. P होउ। 4. B इण्झले: P जुज्नासे।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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