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________________ 10 88.11.71 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [ 147 इय गज्जतहिं भंगुरभावई दोहिं मि अप्फालियई सचावई। उट्टेिउ गुणटंकारणिणायउ वेविउ वाउ वरुणु जडु जायउ। सहभएण व तेण चमक्का सुरकरि दाणु देंतु णउ थक्कइ। ससि तसियट हुउ झीणकलालउ' थिउ जमु णं भयभीएं कालज। जलणिहिजलई चलई परिधुलियई गहणक्खत्तई महिलि लुलियई। पियाई सत्त वि पायालई गिरिसिहरई णिवडियई करालई। पत्ता-अमरासुरविसहरजोइयई तोणीरई खंधारोइवई। उप्पुंखविचित्तई संगयई णं गरुडहं पिछई। णिग्गयई12 ॥७॥ 15 (1) दुवई-'वलइवरयणसार- बहुपहरण चडुलसमीरधुयधया। ता जलधरायदामीयरपथजुषचोइया गया ॥७॥ करडगलियमयमिलियमहुयरा जलहर व्य पविमुक्कसीयरा । सायर व्य गज्जणमहारवा वइवसु' व्य तइलोक्कभइरवा' । मुणिवर च्च कयपाणिभोयणा थीवण व्व लीलावलोयणा । पत्थिव ब्व सोहंतचामरा खलणर' व्य परिचत्तभीयरा । सुपुरिस व्व दढबद्धकच्छया रक्खस व्य मारणविणिच्छया। को नष्ट करूँगा। इस प्रकार क्षणिक आवेग से गरजते हुए दोनों ने अपने-अपने धनुष चढ़ा लिये। डोरियों की टंकार का शब्द उठा। उससे पवन काँप गया और वरुण जड़ हो गया। उस शब्दभव से ऐरावत डर जाता है और मदजल छोड़ता हुआ नहीं थकता है। चन्द्रमा त्रस्त होकर क्षीण कलाओंवाला हो गया। यम मानो भयभीत होकर काला पड़ गया। समुद्र का जल चंचल होकर व्याप्त हो गया। ग्रह-नक्षत्र धरणीतल पर झूल गये। सातों पाताललोक काँप उठे। भयंकर गिरिशिखर गिर पड़े। ___ पत्ता-अमर, असुर और विषधरों के द्वारा देखे गये, कन्धों पर रखे हुए, पुंखों से विचित्र और मिले हुए तरकस ऐसे लगते हैं, मानो गरुड़ों के पंख निकल आये हों। (11) जिनके सोने के पल्याण (जीन) झुके हुए हैं, जो प्रचुर अस्त्रों से युक्त हैं, जिन पर चंचल पवन से ध्वज उड़ रहे हैं तथा जरासन्ध राजा और दामोदर के दोनों पैरों से प्रेरित किये गये, सूड़ों से झरते हुए मद पर मँडराते हुए मधुकरवाले वे गज मेघों की तरह जल-कण छोड़ रहे थे। वे समुद्र के समान महागर्जनवाले थे। यम की तरह त्रिलोक के लिए भयावह थे। मुनिवरों की तरह पाणि (हाथ, सँड़) से भोजन करनेवाले थे। स्वीजन के समान लीलापूर्वक देखनेवाले थे। राजाओं की तरह चामरों से शोभित थे। दुष्टजनों की तरह भय से दूर थे। सत्पुरुष की तरह वस्त्र (ब्रह्मचर्य, रस्सी) जिन्होंने अच्छी तरह धारण कर रखा है, राक्षसों 5. P जाइ31 G. PS चवक्कड़। 7. ABPS ALS. ओणु कला | B. APS भयमीयए। 9. BP "रोहियई। 10. 5 संगई। 11. BP पिच्छई। 12. K गिरगई। (11) I. P बलविया । 2. A"गणसारि। 3. PS जरसेंध-14. ABS बइवप्त च। 5. R तिलुक्क तेलोक्क"। , BAIS. लीलाविलोमणा। 7.5 खलपण च। 8. A1 परचित्त ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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