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महाकइपुष्फयंतविरयर महापुराणु
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अंत" ललंतई गाढई ताडइ संडमुंडखंडोहई पाडइ । वेढइ उब्बेढइ संदाणइ
रक्खे भुक्खारीणई पीणइ। वग्गइ रंगइ णिग्गई पविसई दलइ मलइ उल्नलइ ण दीसइ । घत्ता-कुसपास विलुंचइ हयवरहं गलगिज्जउ तोडइ गयवरह।
वरवीर रणगणि पडिखलइ मंडलियहं रयणमउड दलइ ॥8॥
दुवई-जुज्झइ वासुएउ परमेसरु परबलसलिलमंदरो'।
सुरकामिणिणिहित्तकुसुमावलिणवमवरंदपिंजरो' ॥७॥ गयमयपंकभमिइ चलमहुयरि हवलालाजलवाहिणि दुत्तरि। संदणसंदाणियइ दुसंचरि रुंडमुडविच्छंडभयंकरि । लोहियंभथिंभेहि सुसंचुएइ कडयमउडकुंडलहारंचिइ। सामिपसायदाणरिणणिग्गमि दुक्क विहंगमि तहिं रणसंगमि । सिरिसंकुलससामत्थमयंधे माहउ पच्चारिउ जरसंधै"। गंदगोव घियदुढे मत्तउ
जं तुहं महु करि मरणु ण पत्तउ। तं जाणहि करिमयररउद्दइ ल्हिक्किवि धक्कउ लवणसमुद्दइ।
आँतों को ताड़ित करते हैं, सिरों और धड़ों के समूहों को गिराते हैं, बाँधते हैं, सहारा लेते हैं, भूख से पीड़ित राक्षसों को सन्तुष्ट करते हैं, व्याकुल होते हैं, चलते हैं, निकलते हैं, प्रवेश करते हैं, दलन करते हैं, मलते हैं, गीले होते हैं, दिखाई नहीं देते।। ___घत्ता--अश्वबरों के तर्जकों को वह नष्ट कर देते हैं। गजवरों की सूड़ों को मसल देते हैं और माण्डलिक राजाओं के रत्नमुकुटों को चूर-चूर कर देते हैं।
शत्रुसेनारूपी जल के लिए मन्दराचल के समान, सुरबालाओं द्वारा रखी गयी कुसुमांजलि के नवपराग से पीत परमेश्वर वासुदेव युद्ध करते हैं। जिसमें गजमदजल की कीचड़ बह रही है, भ्रमर चल रहे हैं, जो घोड़ों की लार के जल की नदी से दुस्तर है, जिसमें रथों का सहारा लिया जा रहा है, जो दुस्संचर है, सिरों
और धड़ों के समूह से भयंकर है, जो रक्तरूपी जल की बूंदों से सुसिंचित है, जो कटकमुकुट और कुण्डलहारों से अंचित है; जिसमें स्वामी के प्रसाद और दान के ऋण का निर्यातन किया जा रहा है, ऐसे उस भयंकर युद्ध-संगम में पहुँचे हुए माधव को श्री और अपने कुल के सामर्थ्य मद से अन्धे जरासन्ध ने ललकारा-हे नन्दगीप ! घी-दूध से मत्त तुम मेरे हाथ से मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए-उसका तुम यह कारण जान लो कि
li.A अंतललंतः अपणेणण्णां। 17. APS गाद। 18. AS "रोणे; रिण इ)। ।५. 5 रग्गइ। 20. D हिलसइ । 21. P पइसइ।
(9) IA"मंदिरो। 2. ABS कुलपंजलि'1. PS "मरिंद। 4. भमिय' । 5. Kजतियाहणि दुरि butgloss नदी on लियाहाण।5. IBPS "दिच्छ । .. $ धंधेहिं । A. APN मुसिंचिए; B संचिए। 9. B रणि। 10. AP सिरिकुलबलसामत्थ। 11. P जर ।