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________________ 142 ] महाकवि महापुराणु गोड" यंतु कण्णेण झडम्पिउ चंसि यंतु चिंधेण गलत्थिउ करपुक्खरि पइसइ गणियारिहि चेलंचलपडिपेल्लिउ गच्छइ दिपिसरु" असिपसरु" णिवारइ मणि" विलग्गु वीसासु अ" मग्गइ हरिखुरखउ रोसेण व उड ढंकइ मणिसंदणजंपाणई मलसील कासु ण विप्पिस । दंडि तु चमरेणवहत्थिउ । लोes श्रोरथणत्थति णारिहिं । चउदिसि' णिब्भंछिउ किं अच्छइ । अंतरि पइसिवि णं रणु वारइ । पयणिवडिउ " णं पायह" लग्गइ । जं जं पावइ तर्हि तहिं संठइ । जोयंत सुरवरहं विमाणई । [88.6.5 घत्ता - धूलीरउ रुहिररसोल्लियजं णं रणवहुराएं पेल्लियउं । थिउ रतु पउ वि णउ" चल्लियउं णं वम्महबाणें " सल्लियउं ॥6॥ (7) दुबई - पसमिइ धूलिपसरि पुणरवि रणरहसुद्धाइया' भडा । अंकुसवस' विसंत विसमुब्मड चोइय मत्तगयघडा ॥ छ ॥ 5 10 पड़ी। अपने नित्य के अभ्यास से हाथियों के ऊपर चढ़ गयी। गण्डस्थल पर स्थित वह कानों के द्वारा झड़प दी गयी। मलिन स्वभाववाला किसे बुरा नहीं लगता ? बाँस पर स्थित उसे पताका ने गर्दनिया दी, दण्ड पर स्थित होने पर उसे चमरों ने अपने हाथ से हटा दिया। वह हथिनियों के कररूपी सूँड में प्रवेश कर जाती है। नारियों के स्थूल स्तनस्थल पर घूमती है, उनके वस्त्र के अंचल से हटायी गयी वह चल देती है । चारों ओर से लांछित होकर (मसित होकर ) वह क्या ठहर सकती है ? वह दृष्टि-प्रसार और असि प्रसार को रोकती है, मानो भीतर प्रवेश कर युद्ध का निवारण करती है। मन में लगकर वह मानो विश्वास की याचना करती है। पैरों पर उड़कर, मानो पैरों से लग गयी है। घोड़ों के खुरों से आहत होकर जो क्रोध से उठती है । जो जो वह पाती है, वहाँ-वहाँ स्थित हो जाती है। वह मणि- रथों, जपानों और देखते हुए देवविमानों को ढक लेती है। धत्ता-रणवधू के राग से प्रेरित होकर, रक्तरूपी रस से आर्द्र हो वह एकदम रक्त (रक्त, लीन और लाल) होकर एक भी कदम नहीं चल सका, मानो कामदेव के बाण से पीड़ित हो गया । (7) धूल का प्रसार शान्त होने पर फिर से योद्धा युद्धरथों से उठे । विषम उद्भट द्वेष करती हुई, अंकुश के वश में रहनेवाली गजघटाएँ प्रेरित कर दी गयीं। किसी का तीरों से उर विदीर्ण हो गया, मानो नागों 5. B गल्ल । 6. P चमरेण त्रित्थि 7 A स्वबिसु PS चउदिसु । 8 AB णिन्भच्छित S णिष्यंडिउ 9 AP add after this: अंधार करंतु दिसं गच्छ A मंतु पच्छ कहिं किर गवई, P अह चंचलु किं मिच्चलु अच्छछ। 10. AP असर 11 A सवणि पइसि बीसासु 12. APS | 19. PS पयवडियउ । 14. APS पार्टि 15. A तं तहिं । 16. H रत्तपओ वि रत प वि; Als रतवं पउ वि against Mss. 17. Sण चल्लियउं। 18. A खानहं । (7) 1.6 ° सुद्धाविया 12. A विसविसंत
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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