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________________ 88.6.4] महाकपुष्फयंतविरवर महापुराणु [ 141 उच्छलंतधणुगुणटंकार जोहविमुक्कफारहुंकारई। तोसियफणिदिणयरससिसम्कई वज्जमट्टिचूरियसीसक्कइं। हयमत्थई मस्थिक्करसोल्लई दलियष्टियवीसढवसगिल्लई। मोडियधुरई विहिण्णतुरंगई लउडिघायजज्जरियरहंगई। पग्गहणिल्लूरण'"विहिभीसई करकट्टियसारहिसिरकेसई । भग्गरहाई लुणियधयदंडई पासखंडपीणियभेरुंडई"। लुद्धगिद्धखद्धंगपएसई सुरकामिणिकरघल्लियसेसई। वणवियलियधाराकीलालई" किलिकिलति जोइणिवेयालइं। यत्ता-ता रहबरहरिकरिवाहणहं जुझंतह दोह। मि साहणहं। 15 जो सुहडहं मच्छरम्गि जलिउ तहुधूमु' व रउ णहि उच्छलिउ ॥5॥ दुवई--णं मुहवडु णिहित्तु जयलच्छिहि लोयणपसरहारओ। ___णं रणरक्खसस्स' पवणुद्धउ पिंगलकेसभारओ ॥छ॥ असिधारातोएण ण पसमिउ पंडुरछत्तहु णवरुष्परि' थिउ । उद्धु गोप कुंभस्थलि पडियउ णिच्यभासें गयवरि चडियउ। छा गया। धनुषों और डोरियों की टंकारें उछलने लगीं। योद्धा स्फीत हुंकार करने लगे। नाग, दिनकर, चन्द्र और इन्द्र सन्तुष्ट हो गये। वजमुट्ठियों से शिरस्त्राण टूटने लगे। घोड़ों के सिर रक्तरूपी रस से आर्द्र थे। दलित हड्डियों से भयंकर और वसा से गीले थे। जिनकी धुराएँ मुड़ चुकी हैं, अश्व अलग-अलग जा पड़े हैं, ऐसे रथचक्र दण्डों के आधात से जर्जर हो गये। जो रस्सी (लगाम) खींचने की विधि से भयंकर हैं, हाथों से सारथि के सिर के बाल खींच लिये गये हैं, ऐसे रथ भग्न हो चुके थे। ध्वजदण्ड काटे जा चुके थे। मांसखण्डों से भेरुण्ड पक्षी प्रसन्न हो रहे थे। लुब्ध गिद्धों के द्वारा आधे अंग-प्रदेश खाये जा रहे थे, देवबालाओं के द्वारा हाथों से शिरीष पुष्य डाले जा रहे थे, घावों से रक्तधाराएँ विगलित हो रही थीं। योगिनी और वैतालिक किलकारियाँ भर रहे थे। ___घत्ता-तब रथवरों, घोड़ों और हाथियों के वाहनों से युक्त दोनों ओर की सेनाएँ आपस में भिड़ जाती हैं। सुभटों की ईष्या की आग जल उठी, मानो आकाश में उड़ रही धूल उसी का धुआँ हो। वह (धूल) ऐसी लग रही थी मानो विजयलक्ष्मी पर आँखों के प्रसार को रोकनेवाला मुखपट डाल दिया गया हो; जो मानो युद्धरूपी राक्षस का पवन से उड़ता हुआ पीला केशसमूह हो। वह (धूल) तलवार के धारारूपी जल से शान्त नहीं हुई, वह सफेद छत्रों के ऊपर स्थिर हो गयी, ऊपर जाकर हाधियों के कुम्भस्थलों पर 7. धणगुण" | B. APS जयमत्थय । 9. B मौकक्क | 10. A रसगिल्लई। 11. P लगुडि । 12. AP खग्गह। 18. A णिल्नूरियाय"। 14. AP °सीसइं। 15. B "करकेसई। 16. लुलिया। 17. । मंस | 18. A'पबेसई। 19. B "विगलिय" । 20. AAP फिलिकिलंत": किलिागलत । 21. B दोहिं। 22. P तहे. भूम। 23. Bधूमरओ। (6) 1. A णहरमखसस्स। 2. 5 पवण । 1. A पसरिट। 4. Pउपरि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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