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________________ 140] [88.4.7 महाकइपुप्फयंतविरयड महापुराणु अज्ज वि किर" तुहुँ काई चिरावहि णियदुयालि किं णउ मणि भावहि"। किं संघारिउ तहु जामाइउ किं चाणूरु रणंगणि घाइउ । तं णिसुणिवि हरि कयपहरणकरु उद्विउ हणु भणंतु दट्ठाहरु। हलहर अज्ज वइरि णिद्दारमि दे आएसु असेसु वि मारमि। ता संणद्ध कुद्ध ते णरवर चोइय गयवर वाहिय हयवर"। पहयई रणतूराइं रउद्दई रवपूरियगिरिकुहरसमुद्दई। जायवबलु जलणिहिजलु लघिवि थिउ कुरुखेत्तु झत्ति आसंघिवि । पत्ता-संणद्धई वड्डियमच्छरई करवालसूलसरझसकरइं। अभिट्टई कयरणकलयलई दामोयरजरसिंधह" बलई ॥4॥ दुबई--'हयगंभीरसमरभेरीरवबहिरियणहदियंतये । ___ *उक्खयखग्गतिक्खखणखणरवखंडियदंतिदंतयं ॥छ। कोंतकोडिचुंबियकुंभयलई रुहिरवारिपूरियधरणियलई। चुयमुत्ताहलणियरुज्जलियई विलुलियंतचुंभलक्खलियई। सेल्लविहिण्णवीरवच्छयलई सरबरपसरपिहियगयणयलई। कुरुक्षेत्र के युद्ध-प्रांगण में स्थित है। आप देर क्यों कर रहे हैं ? अपनी दुःयाल क्या मन में नहीं सोचते उसके दामाद का संहार क्यों किया ? चाणूर का रणांगण में वध क्यों किया ? यह सुनकर कृष्ण अपने हाथ में अस्त्र लेकर उठे। होठ चबाते और मारो कहते हुए बोले-हे बलराम ! आज मैं शत्रु को चूर-चूर करूँगा। आदेश दें, सबको मारूँगा। ___ तब वे नरश्रेष्ठ क्रुद्ध होकर तैयार हो गये। उन्होंने गजवरों को प्रेरित किया और अश्यवरों को चलाया। भयंकर रणतूर्य आहत कर दिये गये। यादवसेना समुद्र का जल लाँघकर और अध्यवसाय करके कुरुक्षेत्र में स्थित हो गयी। घता-बढ़ रहा है मत्सर जिनमें ऐसी तथा हाथ में करवाल, शूल, तीर और झस लिये हुए, युद्ध का कोलाहल करती हुई, दामोदर और जरासन्ध की तैयार सेनाएँ आपस में भिड़ गयीं। आहत, गम्भीर समरभेरियों के शब्द से दिशाएँ और आकाश बहरे हो गये। उठी हुई तलवारों की तीखी खन-खन आवाज से हाथियों के दाँत खण्डित हो गये। भालों की नोकों से गजों के कुम्भस्थल चुम्बित थे। रक्तरूपी जल से धरणीतल आप्लावित हो गया। गिरे हुए मोतियों के समूह से उज्ज्वल हो गया। हिलते हुए शिरोभूषण गिर गये। वीरों के वक्षःस्थल बरछों से विदीर्ण हो गये। श्रेष्ठ तीरों के प्रसार से आकाशतल 10. AP तुहूं किर। 31. P दादहि । 12. S संसारित । 13. °पहरणु। 14. B णिहारिमि। 15. ABP कुछ णिव णरयर। 16. P$ रहयर। 17. B "जरसिंध चिलई: PS *जरसेंधह। (5)1. P"तूरभेरी । 2. BPS ALS. "दियंतई। 3. APAIS. "तिक्खखग्ग" 14. BPS ALS. "दंतई। 5. Pविलुलियत" | 6. A "पिहिण्ण: "विहीण।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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