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________________ 88.4.6] महाकइपुण्फवंतविरयद्ध महापुराणु ता संगामभेरि अप्फालिय उद्वय जोह को हदुद्दसण चावचक्ककोतासणिभीसण खलकुलदूषण नियकुलभूषण हक्कारिय दिसिविदितसवासण इच्छियजयसिरिकरसंफासण गुरुरवेण मेइणि संचालिय । कंचणकवयविसेसविहूसण | गुलुगुलंति" मयमयगलणीसण । हिलिहिलंत हरिवर बद्धासण | रुहिरासोसण डाइणिपोसण | मग्गिय अमरविलासिणिदंसण | घत्ता-रह रहियहिं चोइय हयपवर धाइय सुहडुक्खयखग्गकर | दुज्जर पहु जरसिंधु' समायउ अच्छइ कुरुखेत्तर समरंगणि हि कहिं मि ण माइय सुरखयर गुरुडमरडिंडिमोमुक्कसर " ||3|| (4) भुयबलचप्पियसयणफणिदहु+ दुबई - लहु संचलिउ राउ जरसंधु' मबंधु महारिदारणी | गउ कुरुखेत्तमरुणचरणंगुलिचोइ मत्तवारणो ॥ छ ॥ णारयरिसिणा गंपि उविंदहु । णियपोरिंसगुणरंजियतिहुयण' । बहुविज्जाणियरेहिं समेय । सुहडदिण्णसुरवहु आलिंगणि' । कहिउ गहीर वीर गोवद्धण MP स्माइल 3 AP "दित। [ 139 10 HARA "बिलारा 9. HPS संणक्रमेरि 10 ABS गुलुगुलंत 11. B रहियई। 12. AB 'डाएर" | खेतिपरुण 3. B चरणुंगुलि" (4). ABPS जरधु। 9 11 खेत्त अरुण 15 तब संग्राम भेरी बज उठी और भारी शब्द से धरती हिल गयो । क्रोध से दुर्दर्शनीय और स्वर्णकवचों के विशेष भूषणवाले तथा धनुष, चक्र, भाला और वज्र से भीषण योद्धा उठे। मदमाते गले के स्वरवाले हाथी चिंघाड़ते हैं। शत्रुकुल के लिए दूषण और अपने कुल के लिए आभूषण तथा जिन पर आसन बँधा हुआ हैं, ऐसे श्रेष्ठ अश्व हिनहिनाते हैं। दिशा-विदिशा में खून पीनेवाले और डाइनों का पोषण करनेवाले, राक्षसों को हकारनेवाले, विजयश्री के कर का स्पर्श चाहनेवाले और अमर विलासिनियों का दर्शन माँगनेवाले, 5 धत्ता- रथिकों (सारथियों) द्वारा अश्वप्रबर और रथ प्रेरित कर दिये गये और सुभट अपनी तलवारें हाथ में उठाकर दौड़े। (4) तब अपनी अरुण चरणांगुलियों से मस्त गज को प्रेरित करनेवाला, भयंकर शत्रुओं को मारनेवाला, मदान्ध राजा जरासन्ध शीघ्र चला। इस बीच नारद ऋषि ने अपने बाहुबल से नागशव्या को चाँपनेवाले उपेन्द्र (कृष्ण) से जाकर कहा - हे गम्भीर वीर गोवर्धन, अपने पौरुष से त्रिभुवन को रंजित करनेवाले (हे देव), अनेक विद्या-समूह से सहित दुर्जेय राजा जरासन्ध आ गया है। जहाँ सुभटों द्वारा देववधुओं को आलिंगन दिया जाता है, ऐसे S " सचल । 5. P तिहुवण 6. B इहु- PS एहु 7. PS जरसेंधु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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