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महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु
[88.2.1] मई पुच्छिउ णरु एक्कु जुवाणउ पुरवरु कवणु एत्थु को राणउ। कहइ पुरिसु पडिभडदलवट्टणु किं ण मुणहि दारावइ पट्टणु। कि ण णहि बहुपुण्णहं गोयरु राणउ एत्यु देउ दामोयरु । ता हउं णवरि पइउ केही मणहारिणि सुरवरपुरि" जेही।
घत्ता-तहिं] णिवधरु सणिहु मंदरहु अणुहरइ गरिंदु पुरंदरहु।
__णर' सुर सुतिरच्छणियच्छिरउ णारिउ णावइ अमरच्छरउ ।।2।।
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दुवई-तं पेच्छंतु संतु हउँ विभिउ' गेण्डियि रयणसारयं ।
___ आयउ तुज्झु पाति मगहाहिव पसरियकरवियारयं' ॥छ। तं णिसुणिवि विहिवंचणढोइउं पहुणा कालजमणमुहं जोइउं । मई जियति जीवति ण जायव हुयवहु लग्गु धरति ण पायव। कहिं वसंति णियजीविउं लेप्पिणु वणि सियाल सीहहु ल्हिक्केप्पिणु। हलं जाणउं ते सवल विवण्णा सिहिपइट्ट' पाणभयदण्णा । णवरज्ज वि जीति विवक्खिय गंदगोवभुयबलपरिरक्खिय' । मारमि तेण समउं णीसेस वि फेडमि बलविलासु पसरच्छवि।
मेरा जलयान नष्ट नहीं हुआ, और जाकर किसी प्रकार किसी नगर से जा लगा। मैंने एक युवक से पूछा कि यह कौन-सा नगर है और यहाँ कौन राजा है ? वह बोला-क्या तुम नहीं जानते कि शत्रु-योद्धाओं को नष्ट करनेवाला यह द्वारावती नगर है ? क्या नहीं जानते कि अनेक पुण्यों के द्रष्टा देव दामोदर (कृष्ण) इसके राजा हैं ? तब मैं नगरी में इस प्रकार घुसा, मानो सुन्दर अमरावती हो। __घत्ता-वहाँ सब देखते हुए मैं विस्मय में पड़ गया और अपने किरण-समूह को प्रसारित करनेवाले इन श्रेष्ठ रत्नों को लेकर आपके पास आया हूँ।।
यह सुनकर राजा ने विधि की प्रवंचना को प्राप्त कालयवन के मुख की ओर देखा। वह (कालयवन) बोला-"मेरे जीते-जी यादव लोग जीवित नहीं रह सकते। आग लगने पर पेड़ को नहीं बचाया जा सकता। अपना जीवन लेकर सियार वन में सिंह से छिपकर कहाँ रह सकते हैं ? मैंने समझा था कि वे सब नष्ट हो गये और प्राणों के भय से पीड़ित होकर आग में जल मरे। लेकिन नहीं, आज भी शत्रु जीवित हैं और नन्दगोप के बाहुबल से सुरक्षित हैं। मैं उसके सहित सबको मारूँगा और फैलती हुई कान्तिवाले उसे और सैन्य विलास को नष्ट कर दूंगा।"
10. P"पुरे जेझी। 11. P ताहें। 12. नृवधत। 13. A अणुहबइ। M.Aणवसरभिसिणिणिवचिरट। 15. APS तिरिचि Boतिरछि।
(3) 1.5 यिहिउ। 2. तुझा । SA कादिवायरं। 4. जाणाम। 5. P सिहिहि पदक। 6. B पाण। 7. PS पडिरक्खिय।