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________________ 88.2.10] [ 137 महाकइपुप्फयतविरयउ महापुराणु जिणपुण्णाणिलकंपियसयमहिम रयणकिरणमंजरिपिंजरणहि। बारहजोयणाई वित्यिण्णइ रइयइ णयरि रिद्धिसंपण्णइ। घत्ता-संगामदिखसिक्खाकुसलि वसुएवचरणसररुहभसलि। असुरिंदमहाभडमयमहणि सिरिरमणीलंपडि महुमहणि ॥1॥ दुवई-'दीहरकंसविडविउम्मूलणगयवरगरुयसाहसे । थिय' सुहिसीरिविहियआणाविहिकयणयभयपरव्वसे ॥छ। उप्पण्णइ सामिइ जेमीसरि तबहुयवहमुहहुयवम्मीसरि। कालि गलतई पइहि णिरतरि एत्तहि रायगिहंकइ पुरवरि । मगहाहिउ अत्थाणि बइठ्ठउ केण वि वणिणम पणविवि दिट्ठउ। ढोइयाइं रयणाइं विचित्तइं तासु तेण करि णिहिय पवित्तई। सपसाएण वयणु जोएप्पिणु पुच्छिउ राएं सो विहसेप्पिणु।। कहिं लद्धई माणिक्कई दिव्य मलपरिचत्तई णावइ भब्बई। भणइ सेट्टि हउं गउ वाणिज्जहि पस्थिव दविणावज्जणविज्जहि । दुव्वाएं जलजाणु ण भग्गउं जाइवि कस्य पुरवरि' लग्गउं।। पर, समुद्र के भंग हुए जल के फिर से मिल जाने पर, जिनदेव के पुण्यरूपी पवन से इन्द्र के काँप उठने पर, रत्नों की किरणमंजरी से आकाश के पीला होने पर, बारह योजन विस्तृत और ऋद्धि से सम्पन्न नगर की रचना होने पर, ___घत्ता-संग्राम की शिक्षा और दीक्षा में कुशल, वसुदेव के चरणरूपी कमलों के भ्रमर, असुरेन्द्ररूपी महाभटों के मद को चूर करनेवाले, लक्ष्मीरूपी रमणी के लिए लम्पट, (2) कंसरूपी विशाल वृक्ष के उन्मूलन के लिए गजवर के समान महान् साहसवाले श्रीकृष्ण के सुधी बलभद्र द्वारा की गयी आज्ञाविधि के कारण नीतिभय के अधीन रहने पर, तपरूपी आग के मुख में कामदेव को आहत करनेवाले नेमीश्वर स्वामी के उत्पन्न होने पर, जब प्रजा निरन्तर अपना समय बिता रही थी, तब वहीं राजगृह नगर में मगधराज दरबार में आसन पर बैठा था। तभी एक वणिक ने प्रणाम कर उससे मेंट की। लाये हुए बहुत-से पवित्र रत्नों को उसने उनके हाथ पर रख दिया। प्रसादपूर्वक उसका मुख देखते हुए राजा ने उससे हँसकर पूछा-ये माणिक्य-धन कहाँ पाया ? मल से रहित ये ऐसे लगते हैं मानो भव्य हों ? सेठ बोला-हे राजन् ! द्रव्य कमाने की वाणिज्य विधा के लिए मैं गया था। दुर्वात से किसी प्रकार "I AIS. "कपिए। 22. B सरोरुह । (2) I. P"उग्मूलणे। 2. गरूव। 3. Als. थिए against Mss. 4. Aणहयरपरवसे; RS 7. 5 दविणायज्जण। 8. 5 दुग्याई। 9. Bपुरि वरि। बाहय । 5. P गलति पड़ी। 6. मगहाहियु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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