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________________ 134] 187.17.1 महाकइपुप्फयतविरयड महापुराणु (17) दुवई-दहिअक्खयसुणीलदूवंकुरसेसासीहिं' णदिओ। धम्ममहारहस्स गइगुणयरु णेमि सहिओ ॥छ।। पुणु दारावइपुरु* आवेप्पिणु 'सुद्धभाउ भावें भावेप्पिणु । 'तिवरण सुविसुद्धिई' पणवेप्पिणु जिणु जणणीउच्छोंगथवेप्पिण। णच्चइ सुरवइ दससयलोयणु "दहसयद्धपहसियपवराणणु'। दिसिदिसिपसरियचलदससयकरु डोल्लइ णहयलु सरवि सससहरु। महि हल्लइ विसु मेल्लइ विसहरु''। दिण्णुइंडवाउ' णहि णज्जइ पायंगुटुणक्खु ससि छज्जइ। चलइ जलहि धरणीयलु रेल्लइ लीलइ बाहुदंडु जहिं घल्लइ। तहिं कुलमहिहरणियरु विसट्टइ । विष्फुरति तारावलि तुट्टइ। णच्चिवि एम सरसु आणदें । वंदिवि जिणु" सहुं सुरवरवंदे" । गउ सोहम्मराउ सोहम्महु पुरवरि पाहहु पालिवधम्महु। णिवसंतहु वउ णिरुवमरूवउंगे। दहधणुदंडपमाणु'' पहूयउं । णवजोव्यणु सिरिहरु णित्तामसु सामिउ" एक्कु सहसवरिसाउसु। 10 (17) दही, अक्षत, अत्यन्त हरे दूर्वादल, शेषपुष्पों और आशीर्वादों से हर्षित तथा धर्मरूपी महारथ की गति को सम्भव करनेवाले उन्हें 'नेमि' (आरा) कहकर पुकारा गया। फिर द्वारावती नगरी में लाकर, भाव से शुद्धभाव का ध्यान कर, तीन प्रकार की विशद्धियों से प्रणाम कर, जिन बालक को माता की गोद में स्थापित कर. अपने पाँच सौ मुखों से हँसता हुआ, दिशा-विदिशाओं में अपने हजार करों को फैलाता हुआ सहस्रनयन देवेन्द्र नृत्य करता है। आकाश सूर्य और चन्द्रमा के साथ डोल उठता है। धरती हिल जाती है, विषधर विष उगलने लगता है, आकाश में उद्दण्ड वायु जान पड़ती है। पैरों के अंगूठे के नख में चन्द्रमा शोभित है, समुद्र चलायमान है, धरणीतल प्रवाहित है। लीलापूर्वक वह बाहुदण्ड जहाँ फेंकता है, वहाँ. कुलमहीधरों का समूह नष्ट हो जाता है, चमकती हुई तारावलि टूटने लगती है। इस प्रकार आनन्द के साथ सरस नृत्य कर और सुरवर-समूह के साथ जिनदेव की वन्दना कर, सौधर्मराज अपने सौधर्म स्वर्ग चला गया। धर्म का परिपालन करते हुए, नगरी में निवास करते हुए उनकी वय, अनुपम रूप और शरीर दस धनुष प्रमाण हो गया। लक्ष्मी का धारक नवयौवन, अदैन्य स्वामित्व, एक हजार वर्ष आयु, (17)1.5"दुव्यंकुर । 2. ABPS 'पुरि । 3. RS आणेप्पिणु। 1. AP read 3 basia. 3. "भावु। 6, B पणवेष्पिणु। 7. AFTEad 40 as Jh. R. AD तिरयण' K तिरयण in second hand but gloss त्रिकरण। 9. AB सुविसुद्धि: ' सुद्धबुद्धि। 10. AHP दस | 11. A सहसअद्ध' ।।2. Badds तंतीपटलाइमरसस । IS A दिण्णदंडपाउ यि पाहिः ओह। 14. AB "सिहरु। 5. Bणयदि। 16. Pजिणयस सहुं सुरबिदें। 17. Fs सुरविंदें। 19. B णिरुपम19. 5 पवाणु। 20. A सामिट एक्कु वरिसु सहसाउनु " साभिउ तहसु एक्कु यरिसाउसु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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