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1321 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
[87.15.! (15) दुबई- सनूर६. पिहोरों रितिरिवारयो ।
चरणंगुष्ठएहि संचोइउ सुरयइणा सयारणो ॥छ। तारायणगहपतिउ लंधिवि सुरगिरिसिहरु झत्ति आसंघिवि। दसदिसिवहि धाइयजोण्हाजलि अद्धचंदसंकासि सिलायलि। णच्चियसुररामारसणासणि णिहिड सुणासीरें सिंहासणि। णाहणाहु परमक्खरमंतें
साया, हबिंदुरेहनें। इंदजलणजमणेरियवरुणहं पवणकुबेररुद्दहिमकिरणहं। पडिवत्तीइ दिणेसफणीसही अण्णभाउ ढोइवि णीसेसह। पंडुरेहिं णिज्जियणीहारहिं कलसहिं वयणविणिग्गयखीरहि। णं कित्तीथणेहिं पयलंतहिं णं संसारमलिणु णिहणंतहिं। णावइ रइरसतिस णिरसंतहिं यं अट्ठारहदोस धुयंतहिं। सित्तउ देवदेउ देविंदहि
गज्जंतहिं सिहरि व णवकंदहि । पत्ता-इंदें जिणणिहियाई पुप्फई तंतुयबद्धई। णं बम्महकंडाई" आयमसुत्तणिबद्धई ॥15॥
(15) मंगल तूर्य, वाद्य और वीरतापूर्ण शब्दों के साथ, इन्द्र ने अपने पैरों के अँगूठे से महीधर भित्तियों को विदारण करनेवाले अपने हाथी ऐरावत को प्रेरित किया। तारागणों और ग्रहों की कतारों को लाँघते हुए वह शीघ्र ही सुमेरु पर्वत के शिखर पर पहुँच गया। जिसका ज्योत्स्नारूपी जल दशों दिशापथों में दौड़ रहा है, ऐसे अर्धचन्द्र के समान शिलातल पर नाचती हुई देवांगनाओं की करधनियों के शब्दों से युक्त सिंहासन पर इन्द्र ने, 'ओं स्वाहा' इस साकार परमाक्षर मन्त्र के साथ, उन्हें स्थापित कर दिया। इन्द्र, ग्नि, यम, नैऋत्य, वरुण, पवन, कुबेर, रुद्र और चन्द्रमा, दिनेश और नागेश सभी देशों को आदर के साथ, आदर देकर, हिमकणों को पराजित करनेवाले जिनके मुख से सफेद दूध निकल रहा है, ऐसे कलशों के द्वारा देवदेव का अभिषेक किया, मानो प्रगलित कीर्तिस्तनों से संसार की मलिनता को नष्ट करते हुए, मानो रतिरस की तृष्णा का निरसन करते हुए, मानो अठारह दोषों को धोते हुए, देवेन्द्र ने इस प्रकार अभिषेक किया मानो गरजते हुए नवमेघों ने पर्वत का अभिषेक किया हो।
घत्ता-धागे से बँधे हुए, जिन पर रखे हुए पुष्प ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानो कामदेव के तीरों को आगम सूत्रों ने बाँध दिया हो।
(15) 1.A'दारुणी। 2. PS द्वरण 13. AS "यह 14. AP पसारिपजोण्डाTS. HP सीहासणि । 6.P"फणेसह। 7. कंतीथणेहि P कित्तीयगेटिं। 8. s देयदेवु19. P तंतुहि बरई। 10. कुंडाई।