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________________ 87.14.131 [ 131 महाकद्दपुप्फवंतविस्यउ महापुराण पत्ता-उप्पण्णे जिणणाहे सग्गि सुरिंदहु आसणु। कंपइ ससहावेण कहइ व देवह'' पेसणु ॥13॥ UT दुवई-घंटाझुणिविउद्ध कप्पामर हरिसवसेण' पेल्लिया। जोइड इरिरहिं घेतर पपरददेहि गल्लिया। भावण संखणिणायहि णिग्गय गयणि ण माइय कत्थइ हय गय। सिवियाजाणहिं विविहविमाणहिं उल्लोवेहिं दियंतपमाणहि। मोरकीरकारंडहिं चासहिं फणिमंजारमरालहि मेसहिं । करिदसणाहयणीलवराहिं आया सुरवर सहुं सुरणाहिं। दारावइ पइट्ठ परियचिवि मायाडिंभे मायरि चिवि। जय परमेट्टि परम पभतिइ उच्चाइछ जिणु सुरवइपत्तिई। पाणिपोमि भसलु व आसीणउ इंदहु दिण्णउ तिहुयणराण। अणिमिसणयणहिं सुइरु णियच्छिउ कयपंजलिणा तेण पडिच्छिउ। अंकि णिहिउ कंचणवण्णुज्जलि हरिणीलु व सोहइ मंदरयलि। घत्ता-ईसाणि छत्तु देवहु उप्परि धरियउं। सोहइ अहिणवमेहि ससिबिंबु व विप्फुरियउं ॥4॥ घत्ता-जिननाथ के जन्म लेने पर स्वर्ग में स्वभाव से देवेन्द्र का आसन कौंपता है और वह देवों को आज्ञा देता है। घण्टों की ध्वनियों से प्रबुद्ध कल्पवासी देव हर्ष के कारण प्रेरित हो उठे। ज्योतिष देव सिंहनादों से तथा पटुपटह के शब्दों से छह व्यन्तर देव चल पड़े। भवनवासी देव शंख-निनादों के साथ निकले। हाथी और घोड़े आकाश में कहीं भी नहीं समा सके। शिविका, यानों, विविध विमानों, दिगन्त प्रमाणवाले चैंदोबों, मोरों, तोतों, कारण्डों, चातकों, साँपों, बिलायों, हंसों, मेढ़ों, हाथियों के दाँतों से प्रताड़ित नीले मेघों और इन्द्र के साथ सुरवर आये। तीन प्रदिक्षणा देकर वे द्वारावती में प्रविष्ट हुए। मायावी बालक से माता को प्रवंचित कर तथा 'परम परमेष्ठी की जय हो' यह कहते हुए, देवियों की कतार ने जिनवर को उठा लिया। करकमल में भ्रमर की तरह बैठे हुए त्रिभुवननाथ को उसने इन्द्र के लिए दे दिया। वह अपने अपलक नेत्रों से बहुत समय तक देखता रहा और फिर हाथ जोड़कर उसने उन्हें ले लिया। स्वर्ण-रंग के समान उज्ज्वल गोद में रखे हा जिन ऐसे शोभित हैं, जैसे मन्दराचल पर इन्द्रनीलमणि हो। ___घत्ता-ईशानेन्द्र ने देव के ऊपर छत्र धारण किया, जो अभिनव मेघ में चमकते हुए चन्द्रबिम्ब के समान प्रतीत हो रहा था। 13. उमहि । [4. A दवहो । दइचहो । (14) हरियधभेण। 2. APS पहसरोहिं । 9. APS "मजार-14. B पह।..Sसुरचर" | 6. AP पाणिपोम"17. APतिवण" 18. Pईसाणंदें। 9.3 ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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