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महाकइपुष्पयंतविरयड महापुराणु
187.13.1
(13) दुवई-हिरिसिरिकतिसंतिदिहिबुद्धिहि देविहिं कित्तिलच्छिहिं।
सेविय रायमहिसि महिसामिणि' अहिणवपंकयच्छिहि ।छ॥ सक्कणिओइवाहिं पणवंतिहिं अवराहि मि उचयरणई देंतिहिं । तहिं पहुपंगणि' पउरंदरियइ आणइ पउरपुण्णपरिचरियई। मणिमयमउडपसाहियमत्थाउ पुवमेव णिहिकलसविहत्थर। उडुमागाइं तिण्णि पविउहउ" धणयमेहु धणधारहिं बुट्टउ । कत्तियसुक्खपक्खि छट्टई' दिणि उत्तरआसाढइ मयलछणि। देउ जयंलु" गणसंपण्णउ गयरूवेण गब्मि अवइण्णउ । आय देव देवाहिव दाणव वंदिवि भावें सफणि समाणव । पुज्जिवि जिणपियराई महुच्छवि पच्च्यि पवियंभियभंभारवि । णवमासावसाणकयमेरें।
पुणु वसुपाउसु विहिउ कुबेरें। पंचलक्खवरिसई" णरसंकरि संजाय जांभणाहजिगतार सावणमासि समुग्गड़ ससहरि पुण्णजोइ पुव्युत्तइ वासरि। तक्कालंतजीवि णिम्मलमणु जणणिइ जणिउ देउ सामलतण।
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(13) ह्री, श्री, कान्ति, शान्ति, धृति, बुद्धि, कीर्ति और लक्ष्मी (अभिनव कमल के समान आँखोंवाली) देवियों ने ही स्वामिनी राजरानी की सेवा की। देवेन्द्र के द्वारा नियोजित और प्रणाम करती हुई और दूसरी देवियों ने भी उपकरण देते हुए (सेवा की)। उस राजा के प्रांगण में इन्द्र के प्रचुर पुण्य से युक्त आज्ञा से, जिसका मस्तक मणिमय मुकुटों से प्रसाधित है और जिसके हाथ में पहले से ही निधियों के कलश हैं, ऐसा कुबेर छह माह तक धनरूपी धाराओं को बरसाता रहा। ___कार्तिक शुक्ल पक्ष छठी के दिन, चन्द्रमा के उत्तर आसाढ़ नक्षत्र में स्थित होने पर, ज्ञान से सम्पूर्ण जयन्त स्वर्ग से देव गजरुप से गर्भ में अवतीर्ण हुआ। तब देव-देवाधिप, दानव, नाग और मनुष्य आये और भावपूर्वक वन्दना कर जिन भगवान् के माता-पिता की पूजा कर, जिसमें भम्भा (वाद्य विशेष) का शब्द बढ़ रहा है ऐसे महोत्सव में उन्होंने नृत्य किया। नौ माह पर्यन्त की अवधि में कुबेर ने फिर से धनवृष्टि की। नमिनाथ जिन के जन्म के पश्चात् मानव-परम्परा में पाँच लाख वर्ष बीतने पर सावन माह में चन्द्रमा के उदय होने पर (शुक्ल पक्ष में) ब्रह्मयोग में छठी के दिन उस काल के अन्त में जीनेवाले (अर्थात् एक हजार वर्ष जीनेवाले) निर्मल-मन, श्यामल-शरीर देव (जिनदेव) को माता ने जन्म दिया।
(19) . Sदिदि। 2.A सासामिाण: Pतियतामिणिपु. A अमराहिवउवचरणई तिहिं। 4. AP पंगणि। 5. APF परियरियइ। 6. AP परिउद्गार; ६ परितुल । . हि । ४. जयंत। 9. B माणु। 10. B मेरं। 11. P"चरिसह। 12. R पुण्ण।