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87.12.13]
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महाकइपुप्फयंतविरयत महापुराणु
(12) दुवई-वियलियदाणसलिलचलधारासित्तकओलमूलओ' ।
पसरियकण्णतालमंदाणिलोलिरभसलमेलओ ॥छ। दिट्ठउ मत्तउ णयणसुहावउ संमुहं एंतउ करि अइरावउ । कामेधेणुकीलारसलीणउ विसु ईसाणविसिंदसमाणउ। रायसीहु उल्लंघियदरिगिरि सिरि पुणु' दिट्ठी णं तिहुयणसिरि। झुल्लंतउं णहि भमरझुणिल्लउं सुरतरुकुसुमदामजुयलुल्लऊं। सारयससहरु जोण्हइ जुट्टाउ हेमंतागमदिणयरु' दिवउ । मीण झसंकझसा इव रइघर" गंगासिंधुकलस मंगलधर। सरु माणसु समुदु खीरालउ मयरमच्छकच्छवरावालउ । सेहीरासणु जणमणमोहणु इंदक्मिाणु फणिंदणिहेलणु। रयणपुंजु" हुयवहु अवलोइउ मुद्धइ सिविणउ पियहु'" णिवेइउ । पत्ता-सिविणयफलु जउजेठु!कहइ सइहि णिवकेसरि।
होसइ तिहुयणणाहु" तुझु गभि परमेसरि ॥12॥
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(12) जिसका कपोल झरती हुई नवजलधारा से सिक्त है, जिस पर फैले हुए ताल के समान कर्ण मन्द पवन से भ्रमर-समूह जैसे घूम रहे हैं, जो नेत्रों को सुहावना लगनेवाला है-ऐसा सामने आता हुआ ऐरावत हाथी देखा। रुद्र के वृषभ (नन्दी) के समान, कामधेनु से क्रीडारस में लीन बैल; घाटियों और पहाड़ों को लाँधनेवाला सिंहराज देखा। फिर लक्ष्मी को देखा जो मानो त्रिभुवन की लक्ष्मी हो। भ्रमरों की ध्वनि से युक्त, आकाश में झूलती हुई कल्पवृक्ष के फूलों की दो मालाएँ देखीं। पुनः ज्योत्स्ना से युक्त शरतकाल का चन्द्रमा देखा। हेमन्त के आगमन के साथ दिनकर देखा। रति के स्वामी कामदेव की पलक के समान दो मीन देखे। गंगा-सिन्धु के समान मंगल को धारण करनेवाले कलश देखे। मानसरोवर, क्षीरसमुद्र, मगर-मत्स्य एवं कछुओं के शब्दों से युक्त समुद्र देखा। जनमन के लिए सुन्दर सिंहासन, इन्द्र का विमान, नाग-लोक, रत्न-समूह और अग्नि देखी। उस मुग्धा ने ये स्वप्न अपने प्रिय को बताये। ____घत्ता यादवों में सबसे जेठा नृपसिंह समुद्रविजय उस सती को स्वप्नफल बताता है-हे परमेश्वरी ! तुम्हारे गर्भ से त्रिभुवन-स्वामी होगा।
[12) I. PS कवोल | 2. B'मुहायइ। 3. A अहराबइ। 1. B पुण। 5. 5 सायरसस' | 6. AP जुत्तर। 7.A "दिगयरि दित्त देणयरदित्तओ। .A रहबर रइथर। 9. B कच्छमच्छव। 10. B मेरीहासणु। 11. B पुंज। 12. B पियहि। 13. A जणजेछु B जमिछु। 14. AP पियहे। 15. " लिहवण: