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________________ 87.8.131 महाकइपुप्फयतविरपर महापुराणु [ 125 घत्ता-भल्लउ' सुहडणिहाउ णिग्धिणजलणे तं" खद्धउ । आहवि सउहुं" भिडेवि मई जसु जिणिवि ण लद्धउं ॥7॥ (8) दुबई-हा मई कंसमरणपरिहवमलु रिउरुहिरें ण धोइओ। __ इय चिंतंतु धंतु मलिणाणणु जणणसमीबि आइओ ॥छ।। पायपणामपयासियविणएं' दिवउ ताउ तेण पियतणएं। जोइउ सुवउं सच्चु विष्णवियउं अरिउलु' णिरवसेसु सिहिखवियउं। अथमिएण णियाहियवदे थिउ मेइणिपहु परमाणदें। एतहि पहि पवहंत महाइव हरि बल जलहितीरु संपाइय" । दिउ भदिएण' रयणायरु वेलालिंगियचंददिवायरु। वाडवग्गिजालाहिं पलित्तउ जलकरिकरजलधारहि सित्तउ । णवपवालसरलंकुररत्तउ णं कुंकुमराएण विलित्तउ जलयरघोसें भणइ व मंगलु हसइ गाइ मोत्तियदंतुज्जलु। तलणिहित्तणाणामणिकोसें णच्चइ" संवड्डियसंतोसें। परगंभीर। पयइगंभीरउ ण सहई मलु णं अरुहु भडार। महमह आउ आउ साहारइ ण तरंगहत्यें? हक्कार। धत्ता-"अच्छा हुआ कि शत्रुसमूह को दुष्ट आग ने खा लिया। युद्ध में सामने लड़कर उसे जीतने का यश मुझे नहीं मिल सका।" 10 हा, मैंने कंस की मृत्यु के पराभव का मल शत्रु के खून से नहीं धो पाया-यह सोचता हुआ वह अपना ख किये पिता के पास आया। चरणों में प्रणाम कर अपनी विजय प्रकाशित करते हुए प्रिय पुत्र ने अपने पिता से भेंट की। पिता ने पत्र को देखा और उसे सना और मान लिया कि अशेष शत्रकल आग में नष्ट हो गया। अपने अहित-समूह के अस्त हो जाने पर-पृथ्वी का राजा आनन्द से रहने लगा। यहाँ पर महाआदरणीय वे (हरि और बलराम) पथ पर चलते हुए, समुद्र के किनारे पहुँचे। कृष्ण ने समुद्र देखा जिसके तट सूर्य-चन्द्रमा का आलिंगन कर रहे थे, जो वाडवाग्नि की ज्वाला से जल रहा था और गजों की सूड़ों की धाराओं से जल सींचा जा रहा था। नये मूंगों के सरल अंकुरों से जो लाल रंग का था, मानो केदार राग से लिप्त हो। शंखों के घोष से जो मंगल कहा जाता था, मोतियों के दाँतों से उज्ज्वल जो मानो हँस रहा था, अपने तल में रखे हुए नाना मणिकोषों के कारण, बढ़े हुए सन्तोष के कारण जो नाच रहा था, शत्रु के लिए गम्भीर वह मल सहन नहीं करता, मानो प्रकृति से गम्भीर परमजिन हो। हे मधुसूदन ! तुम आओ, आओ-यह कहकर जो धीरज देता है और अपने तरंगरूपी हाथ से मानो उसे बुलाता है। 12.AP भग्गर। 13. ABPS Cl. तं। 14. R समुहु। (8) 1. पाशियपणएं। 2. 5 गियतणएं। 3. K सच्चु and glos3 सधै सत्यं वा; APPS सब्बु । 4. P अरिकुल। 5. A णियाहियचंदें। 6. AP तंपाइच। 7. A भद्दएर, 8. APटेलाढोकेप'। ५. B°करजलधारासित्तज; "करचारांहें सित्तउ। 10. AP गज्जइ गं बहियः। 1. AP पर दुलंघु। 12. ABPS हत्या।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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