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________________ 124] महाकद्दपुप्फयतविरयर महापुराणु [87.6.15 15 पत्ता-हा समुद्दविजयंक हा धारण हा पूरण। थिमियमहोयहिराव' हा हा अचल अकपण ॥6॥ दुवई-हा वसुएव वीर हा हलहर दुम्महदणुयमद्दणा। __ हा हा उग्गसेण गुणगणणिहि हा हा सिसु जणद्दणा ॥७॥ हा हा पंडु चंडु कि जायउं पत्थिववइरु विहरु संप्राव। हा हा धम्मपुत्त हा मारुइ हा हा पत्थ विजयमहिमारुइ। हा सहएव पउल कहिं पेक्खमि वत्त कासु कहिं जाइवि' अक्खमि। हा हा कोंति मद्दि हा रोहिणि हा देवह अणंगसुहवाहिणि . हा महिणाहु कुइउ जमदूयउ सव्वहं' केम कुलक्खउ हूयउ। तं आयण्णिवि चोज्पुरते . . मुसि पिचर विहसलें। . कज्जें केण दुहेण विसण्णा' किं सोयह के मरणु पवण्णा। तं णिसुणेवि देवि तहु ईरइ भणु णरणाहि' कुद्धि को धीरइ। तहु भीएहिं सिबिरु" संचालिज महियलि सरणु ण कहिं मि णिहालिऊं। हय" पुण्णक्खइ णं जरपायव अग्गिपवेसु करिवि मय जायव । तं णिसुणेप्पिणु रणभरजुत्तें भासिउं खोणीयलवइपुत्तें। 10 घत्ता-"हा समुद्रविजयांक, हा धारण, हा पूरण, हा स्तमितसागर, अचल, अकम्पन ! तुम्हारा अस्त हो गया। हा वसुदेव वीर ! हा दुर्मददानवों का मर्दन करनेवाले हलधर ! हा हा उग्रसेन ! गुणगणनिधि हा हा, शिशु जनार्दन, हा हा प्रचण्ड, चण्ड, तुम्हें क्या हो गया ? राजा के शत्रु ने संकट पैदा कर दिया है। हे हे धर्मपुत्र ! हे मारुति (भीम) ! विजय की महिमा की कान्तिवाले हे अर्जुन ! हे सहदेव ! नकुल ! तुम्हें कहाँ देखें ? किससे कहाँ जाकर बात कहें ? हे कुन्ती ! माद्री ! हे रोहिणी ! कामसुख को देनेवाली हे देवकी !....हा महीनाथ, यमदूत क्या कुपित हो गया है ? सबका कुलक्षय कैसे हो गया !" यह सुनकर आश्चर्य करते हुए हँसकर राजा कालयवन ने पूछा "ये लोग किस दुःख से दुःखी हैं, किसका शोक कर रहे हैं, कौन लोग मरण को प्राप्त हुए हैं ?" __ यह सुनकर देवी उससे कहती है-"बताइए, नरनाथ के कुपित होने पर कौन धीरज धारण कर सकता है ? तुम्हारे भय से शिविर चल पड़ा है, उसे महीतल में कहीं भी शरण नहीं दिखाई दी। पुण्य का क्षय होने पर वे नष्ट हो गये, मानो जीर्ण पेड़ हों। यादव आग में प्रवेश करके मर चुके हैं।" यह सुनकर रणभार में जुते हुए पृथ्वीतलपति के पुत्र कालयवन ने कहा ५. P 'महोबा। (7)1. Pके। 2. A संजायर; संपाइर। 3. P जायवि। 4. ABPS सब्दहुं। 5. B चुछु । 6. P हाहे। 7.A TARII 8. 9. A तुह। 10. PS सिमिरु। II. AP णियपुराण" । णरणाइ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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