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महाकइपष्फरतविरयत महापुराणु
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दुवई–णासिउ जेहिं वइरिविजागणु भेसिउ जेहिं विसहरो।
__मारिउ जेहिं कंसु चाणूरु वि तोलिउ जेहिं महिहरो ।।छ।। ते भुन होति ण होंति व मेरा कि एवहिं जाया विवरेरा। इय गज्जत मुरारि णिवारिउ । हलिणा' मंतमग्गि संचालिउ । जं केसरिसरीरसंकोयणु तं जाणसु करिजीवविमोयणु। अज्जु कण्ह ओसरणु तुहारउं पुरउ पहोसइ परखयगारउं । इय कवि मच्छरु ओसारिउं मड्डुइ दाणवारि णीसारिउ । गंवउरसउरीमहुरापुरवइ
णिग्गय जायव सयल वि गरवइ । बहइ सेण्णु अणुदिणु णउ थक्कइ । महि कंपइ अहि भरहु ण सक्कइ। भूबइ भूमि कमंतकमंतहं
जंतह ताहं पहेण महंतह । कालु व कालायरणि ण भग्गउ कालजमणु' अणुमग्गे लग्गउ । जलियजलणजालासंताणई डज्झमाणपेयाई मसाणई। हरिकुलदेवविसेसहि रइयइं सिवजंबुयवायससयछइयई। गावरणारिरूपेण' रुवंतिउ दिट्टउ देवयाउ सोयंतिउ।
जिन मेरे बाहुओं ने शत्रु के विद्यासमूह को नष्ट किया है, जिनने विषधर को डराया, जिनने कंस और चाणूर का काम-तमाम किया और पहाड़ को उठा लिया, क्या वे मेरे बाहु आज मेरे होते हुए भी मेरे नहीं हैं ? क्या वे आज विपरीत हो गये हैं ? इस प्रकार गर्जना करते हुए मुरारी ने उनको मना किया। बलराम उन्हें नीति के मार्ग पर ले आये कि सिंह का जो अपने शरीर का संकोचन है, उसे तुम हाथी के प्राणों का विमोचन जानो। इसलिए हे कृष्ण ! आज तुम्हारा हटना आगे शत्रु के विनाश का कारण होगा।
यह कहकर उसका मत्सर दूर किया और बलपूर्वक दानवारि श्रीकृष्ण को हटा दिया गया। गजपुर, शौरीपुर और मथुरापुर के राजा, यादव और दूसरे समस्त राजा निकल पड़े। दिन-प्रतिदिन सेना चली जा रही है, वह थकती नहीं है। धरती काँप उठती है, शेषनाग भार नहीं उठा पाता है। राजा और धरती को लाँधते और पथ पर चलते-चलते उन महान् लोगों का काल के समान मृत्यु में आदर नष्ट नहीं हुआ (अर्थात् मृत्यु उनके पीछे पड़ी हुई थी); कालयवन उनके पीछे लग गया। तब यादवकुल के किसी देवविशेष के द्वारा सैकड़ों सियारों
और वायसों से आच्छादित जलती हुई आग की ज्वालाएँ, जलते हुए प्रेत और श्मशान निर्मित किये गये। नागर-नारियों के रूप में रोती हुईं शोक करती हुई देवियाँ दिखाई गयीं।
(6) 1. हरिणा। 2. AP मंडुए: B महुए। ५. B तहतहं । 4. A कालजमण। 5. 5 हारेउलवंसविसेसहि। 6. A जंधू गयरणारिसवेण: 5 णायरणारीरूचि । 8. रुयंतिउ।
जंयुब । 7. ABP