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87.5.2]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
णियपयपंकयतलि' आसीणा राएं अवरु पुत्तु अवरायउ तेण वि जाइवि जयसिरिलोहें सउरीपुरु चउदिसहिं निरुद्धॐ * करिकरवेढणेहिं असरालिहि चंडगयासणिदलियधुरिल्लाहिं फुरियकिरणमालापइरिक्कहिं "भडकरगाहधरियसिरमालहिं 2 विणविवलियलोहियकल्लोलहिं"
दाढाभासुरभइरवकायहिं
ते अवलोइवि संगरि रीणा । पेसिउ जो केण वि ण पराइउ । रहर्किकंकरहयगयसंदोहें। णीसरियउं जायवबलु कुद्ध ं । रहसंकडि पडतमहिवालहिं । विडियकोंतसूलहल सेल्लिहिं" । विहडियमउडकडयमाणिक्कहिं" । असिसंघट्टणहुयवहजालहिं" । दिसिविदिसामिलंतवेयालहिं" । किलिकिलिसद्दहिं भूयपिसायहिं ।
धत्ता - जुज्झइ गरघोराई** करि करवालु करेष्पिणु" । छायालीस तिणि सयई एम जुज्झेपणु || 4 || (5)
दुबई - गइ अवराइयम्मि' 'वसुएबतपूरुहसरणिसुभिए । पविउलसयलभुवणभवणंगणजसवडहे * वियंभिए ॥ छ ॥
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की जलधिरूपी मेखला हिल उठी । राजा (कृष्ण) के चरणकमलों के नीचे बैठे हुए, युद्ध में खिन्न अपने पुत्रों को देखकर राजा जरासन्ध ने अपना दूसरा पुत्र अपराजित भेजा, जो किसी से भी पराजित नहीं हुआ था । रथों, अनुचरों, अश्वों और गजों के समूह से और विजयश्री के लोभ से उसने भी जाकर शौरीपुर को चारों ओर से अवरुद्ध कर लिया। यादवकुल भी क्रुद्ध होकर निकला। हाथियों की सूंडों के प्रचुर वेष्टनों, रथों के अवकाश पड़ते हुए भूमिपालों, प्रचण्ड वज्रगदाओं से दलित सारथियों (या धुरीनों), गिरते हुए भालों, शूलों, हलों और सेलों से स्फुरित किरणमालाओं से प्रचुर नष्ट हुए मुकुट कंटकों के मणियों व योद्धाओं के हाथों से पकड़े हुए शिरस्त्राणों तथा तलवारों की रगड़ से उत्पन्न अग्निज्वालाओं, घावों से रिसते हुए रक्त के कल्लोलों से, दिशा - विदिशा में मिलते हुए वेतालों की डाढ़ों से भास्वर और भैरव शरीरवाले भूत-पिशाचों के द्वारा किलि- किलि शब्द करनेवाले थे ।
पत्ता - हाथ में तलवार लेकर भयंकर तीन सौ छियालीस योद्धा युद्ध करने के लिए आये ।
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वसुदेव के पुत्र कृष्ण के तीरों से अपराजित के विनष्ट होने पर समस्त भुवनरूपी विशाल भवन के आँगन
( 4 ) 1. 13 णिवपंकयतल 2. D जायविरुद्ध 4. A विंमलेहिं: B पेडणेहिं । 5. APK असरालहिं । 6. P महिपालहिं । 7. B गयारिणि । 8. AP लभल्लाहिं 9 B परिक्कहिं । 10. APS 'कडयमउड । 11. B करवाल 12 AP सिरवालहिं 13 B "हुययय । 11. K विण । 15. BKP मिलति । 16, A नरधोरेहिं B णरघोराहं 17 A लएविशु ।
( 5 ) 1. 13 अबरायमि। 2. R प्तपुरुह । S.S सचलभुषणंगण ।