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महाभयंतविरया महापुराणु
[87.3.1
दुवई-वसुएवेण पुत्तु सो घोसिउ भायरु सीरहेइणा।
ससयणमरणवयणु णिसुणेप्पिणु ता कुद्धेण राइणा ॥७॥ पेसिया सणंदणा
ससंदणा। धाविया' सवाहणा
ससाहणा। सूरपट्टणं चियं
धयंचियं। कण्हपक्खपोसिरा
सरोसिरा। णिग्गया दसारुहा
जसारुहा। जाययं सकारणं
महारणं। दिण्णघायदारुणं
पलारुणं। रत्तवारिरेल्लियं
रसोल्लिय। दंतिदंतपेल्लियं
विहल्लियं । छिण्णछत्तचामरं
णयामरें। पुप्फवासवासियं
णिसंसियं। घत्ता-णवर दुरंतरयाहं दुप्पेक्खहं गयणायहं ।
णट्ठा वइरिणरिंद णारायणणारायहं ॥3
दुवई-णासंतेहिं तेहिं महि कंपइ णाणामणियरुज्जला । ___ महुमंधणरयाहि महिमहिलहि हल्लइ जलहिमेहला ॥छ॥
(3) वसुदेव ने उसे अपना पुत्र घोषित किया है और बलराम ने अपना भाई। तब स्वजन की मृत्यु की खबर सुनकर राजा एकदम क्रुद्ध हो उठा। उसने रथ के साथ अपने पुत्र भेजे। वे वाहनों और सेना के साथ दौड़े। वीर पट्टों से वेषित और ध्वजों से सहित कृष्णपक्ष के समर्थक, रोष से भरे हुए कृष्ण के यशस्वी भाई दशार्हादि भी निकल पड़े। जो किये गये आघातों से भयंकर हैं, मांस से अरुण, रक्तजल से प्रेरित, रुधिर से आर्द्र, गजदन्तों से आहत कम्पित, छिम्न छत्र-चँवरों से युक्त, और देवत्व को प्राप्त है, ऐसा महायुद्ध उनमें कारण हुआ। पुष्पवास से सुवासित और मनुष्यों द्वारा वह प्रशंसित था।
घत्ता-दुष्टों का अन्त करनेवाले दुर्दर्शनीय आकाशगामी नारायण के तीरों से शत्रुराजा नष्ट हो गये।
उनके नष्ट होते ही नाना मणिकिरणों से उज्ज्वल धरती काँप उठी। वासुदेव में अनुरक्त महीरूपी महिला
(3) I. A घाइया। 2. PS सुरोसिरा । 3. A दहारुहा। 1. 5 दसोल्लियं । 5. A यहिल्लियं । 6. A णियामर; P णयोमरं।