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महाकइपुप्फयंतविरय महापुराणु पत्ता-जीवंजसइ पवुत्तु गुणि किं मच्छरु किजइ। ___ ताय सत्तु बलवंतु तुज्झु समाणु भणिज्जइ ॥१॥
दुवई-वासारत्ति पत्ति बहुसलिलुप्पेल्लियणंदयोउले।
जेणेक्केण धरिउ गोवद्धणु' गिरि हत्येण णहयले ॥छ।। वइरिणि णियथामेण विणासिय बालत्तणि जें पूयण तासिय । मायासयडु जेण संचूरिउ जेण तुरंगु तुंगु मुसुमूरिउ। जेण तालु धरणीय पाविउ जेण अरिठ्ठवयणु वंकाविउं। तरुजुवलउ* मोडि भुयजुयलें णायसेज्ज आयामिय पबलें। चाउ पणाविउ संखापूरणु' कियां जेण णियपिसुणविसूरणु। कालियाहि तासिवि अरविंदई खुडियई जेण पउरमयरंदई। दंतिहि जेण दंतु उप्पाडिउ सो ज्जि पुणु वि कुंभत्थलि ताडिउ । जो वग्गिवि भडरंगि पइट्सउ कालसलोणउ लोएं दिट्ठउ। घत्ता-जेण मल्लु चाणूरु जममुहकुहरि णिवेइउ ।
तेण गंदगोवेण मारिउ तुह जामाइउ ॥2॥
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घत्ता-जीवंजसा ने कहा--गुणवान व्यक्ति में क्या ईर्ष्या की जाए, हे पिता ! दुश्मन तुम्हारे समान दृढ़ बताया जाता है।
वर्षाऋतु प्राप्त होने पर नन्द गोकुल के अत्यधिक जल में डूबने पर जिसने अकेले गोवर्धन पर्वत को हाथ से आकाश में उठा लिया, बचपन में जिसने शत्रुणी पूतना को त्रस्त कर दिया, जिसने माया-शकट को चूर-चूर किया, जिसने ऊँचे घोड़े को मसल दिया, जिसने ताल वृक्ष को धरती पर गिरा दिया, जिसने अरिष्ट वृषभ को नम्र बना दिया, भुजयुगल से तरुयुगल को मोड़ दिया, जिस प्रबल ने नागशय्या को झुका दिया, धनुष चढ़ा दिया, शंख बजा दिया, और जिसने अपने शत्रुओं को नष्ट कर दिया, कालियानाग को वस्त कर प्रचुर मकरन्दवाले कमल तोड़ लिये, जिसने हाथी का दाँत उखाड़ दिया, और उसी को फिर कुम्भस्थल पर ताड़ित किया, जो क्रुद्ध होकर मल्लयुद्ध-भूमि में प्रविष्ट हुआ, और जिसे लोगों ने यम के समान सुन्दर देखा। ___घत्ता--जिसने चाणूरमल्ल को यम के मुँहरूपी कुहर में निवेदित कर दिया, उसी नन्दगोप ने तुम्हारे दामाद को मारा है।
1. AP पउत्तु; 5 उपत्तु ।
(2) 1.5 गोवरणगिरि। 2. A तिय थामेण। 3. 5 बालतें। 1. B तुरंगतुंग। 5. B As. अरियु 6. APS "जुयल। 7. ABPS संखाऊरणु। H. ABP कयउं। 9. B पर। 10. PS पहु। 11. PS णिवाइउ। 12. B गंदगोबिदें। 13. P जामाइओ।