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________________ 10 ] महाकइपुप्फयंतविरवर महापुराणु वेण वि तुरीयसग्गावइण्ण तुह विरहणडिय अंसुय मुयंति जाणसि जं ताइ वउत्थु चारु अम्हई "तीहिं मि ववसियमणेहिं जाणसि "जं जित्ती आसि कण्ण । जाणसि जं ण समिच्छिय रुयंति । " जाणसि जं किउ चारितभारु । दमवरसयासि 16 पोसियगुणेहिं । घत्ता - छुडु खुड्डु जोइयउं" लड़ जइ वि सुठु दूरिल्लई" ॥ "ध्रुवु जाईभर गयणई मुणति गोहिल्लई 2 | || || ( 1 ) अम्हई ते भायर तुज्झु राय अरहंतु सयंपणामधे उ णियजम्मणु तुह 'जम्मे समेउ सीहउरि 'राउ दूसियविवक्खु सो तुम्हह बंध विधियारु जम्हह हूई दंसणसमीह पत्तिय" फुड जंपिउं जिणवरासु इय कहिवि साहु गय बे वि गवणि अण्णेत्तहि कम्मवसेण जाय । पुच्छियउ "पुंडरीकणिहि देउ । आहासइ णासियमयरकेछ । चिंतागर हु 'अवराइयक्खु । निसुनिधि केवलिवयणसारु । आया तुहुं दिट्टउ पुरिससीह । अण्णु" वि तुह जीविरं एक्कु मासु । णरणाहें इंडिय" तत्ति मयणि । [ 81.10.9 10 5 नाम का पुत्र हूँ, यह अमिततेज छोटा भाई है। ये दोनों ही स्वर्ग से अवतीर्ण हुए हैं । तुम जानते कि जो कन्या जीती गयी थी, वह तुम्हारे विरह में प्रबंचित, आँसू बहाती हुई, रोती हुई, जो तुम्हारे द्वारा नहीं चाही गयी थी, जानते हो उसने सुन्दर व्रत किया था, और जानते हो कि चारित्रभार - गुणों का पोषण करनेवाले हम तीनों ने भी निश्चितमन से मुनि दमवर के पास (व्रत) ग्रहण किया था । घत्ता -जल्दी-जल्दी, उन्होंने एक-दूसरे को देखा; यद्यपि वे काफी दूर थे, निश्चय से स्नेही नेत्रों को जातिस्मरण हो जाता है। ( 11 ) हे राजन् ! हम तुम्हारे वे ही भाई हैं। कर्म के बश से दूसरी जगह उत्पन्न हुए हैं। हे देव ! हमने पुण्डरीकिणी नगर में स्वयम्प्रभ नामवाले अरहन्त से तुम्हारे जन्म के साथ अपने पूर्वजन्म पूछे थे। कामदेव का नाश करनेवाले श्री अरहन्त ने बताया था कि शत्रुपक्ष को दूषित करनेवाला चिन्तागति सिंहपुर में अपराजित नाम का राजा हुआ है, वही तुम्हारा निर्विकार भाई है । केवलज्ञानी के वचनों के सार को सुनकर हम लोगों को तुम्हें देखने की इच्छा हुई, आकर हमने तुम्हें देख लिया । विश्वास करो, जिनवर का कथन स्पष्ट है। अब तुम्हारा जीवन एक माह का रह गया है।" यह कहकर वे दोनों साधु आकाशमार्ग से चले गये। राजा अपराजित ने कामदेव 11. APP । 12 । जाणसं 19. 5 णिउ 14. 13 विणि वि तिहिं मि। 15. A ववमियसणेहिं 15. 8 दमचर्यपासि । 17. B जीव । ॥ A दुरिल्ल Als. टूल्लिई against Mss. to accord with the end of the next line 19 AP भु; B धुई। 20. AP जाइसर 5 जाइभरई 1 21. APS पोहिल्ल brut UK गिहिल्लs and glass in K स्निग्धानि । (11) IAS पुंडरिकणिहे। 3. BK अभि 1. B राय 5. P 65 अवराइअक्खु । 7.5 बंधवु। 8. AB ययणु 19. BS 10. B. AP अक्खमि तुडु 12. AB डिय; 5 ढडिय
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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