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________________ 81.10.8] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [9 मणणयणहुं वल्लहु जइ वि रम्मु बलिमटु ण किज्जइ तो वि पेम्मु। 5 हो हो णिणिलयहु चित्त जाहि मा दुल्लहसंगि अगि थाहि। इय चिंतिवि मेल्लिवि' मोहभंति पणविवि णिवित्तिः णामेण खंति। झाइउ जिणु केवलणाणचक्षु परिकातिर संजम "ड़ लिदछु । घत्ता--दीणहं दुत्थियहं सज्जणविओयजरभग्गहें । णीवइ दुक्खसिहि "जिणवरपयपंकयलग्गहं ॥१॥ (10) अवलोइवि 'कण्णहि तणिय वित्ति चिंतागइणा कय धरणिवित्ति। सहं भायरेहिं दमवरसमीवि तवचरणु' लइउ गुणमणिपईवि। संणासें मरिवि "सिरीवियप्पि जाया तिण्णि वि "माहेंदकप्पि। तहिं दीहकालु णियणियविमाणु । भुंजेप्पिणु सत्तसमुद्दमाणु। इह जंबुदीवि सुरदिसिविदेहि पुक्खलबइदेसि' सवंतमेहि। खयरावलि उत्तरदिसिणियबि । मंदारमंजरीरेणुतंबि। पुरि "णहवल्लहि पह गयणचंदु पिय गयणसुंदरी' मुक्कतंदु। अमियगइ पुत्तु हउं ताहि जाउ इहु अमियतेउ "लहुयरउ भाउ। है।" तब कामदेव के तीरों के जाल से निरुद्ध वह मुग्धा यह सुनकर बोली-'यद्यपि प्रिय मन और नेत्रों के लिए रम्य (सुन्दर) है, तब भी बलात् प्रेम नहीं करना चाहिए। हे मेरे मन ! तू अपने घर में जा, दुर्लभ संगवाले अनंग में मत फँस।' यह सोचकर और मोहभ्रान्ति छोड़कर, निवृत्ति नाम की साध्वी को प्रणाम कर उसने केवलज्ञानरूपी नेत्रवाले जिन का ध्यान किया और तीव्रतम संयम का परिपालन किया। ___घत्ता-दीन दुःस्थित सज्जन के वियोग-ज्वर से भग्न लोगों के दुःख की ज्वाला जिनवर के चरण-कमलों की सेवा करने से शान्त हो जाती है। (10) कन्या का आचरण देखकर चिन्तागति भी घर से निवृत्त हो गया, और गुणरूपी मणियों के प्रदीप रूप दमवर नामक मुनि के पास अपने भाइयों के साथ तपश्चरण ग्रहण कर लिया। संन्यासपूर्वक मरण कर वे तीनों श्री से विरचित माहेन्द्र स्वर्ग में उत्पन्न हुए। वहाँ लम्बे समय तक सात सागर प्रमाण अपने-अपने विमान में सुख भोगकर-इस जम्बूद्वीप के उत्तर विदेह में पुष्कलावती देश है जहाँ निरन्तर मेघ बरसते रहते हैं, वहाँ विजयाध पर्वत के उत्तर श्रेणी-तट पर जो मन्दार मंजरी की धूलि से लाल है, ऐसे नभबल्लभ नगर में राजा गगनचन्द है, आलस्य से रहित, उसकी गगनसुन्दरी नाम की पत्नी है। मैं उससे उत्पन्न अमितगति 4. B बलिपद्छु । यतिमंड; 5 बलिमद्द। 5. P16. B हो हो णियणिलयह: P हो होउ णियत्तहे; 5 हो हो णियणिलयहे। 7. मल्लिवि। . $ णिवित्त । 9. "वियोय। 10. BPSAI. णावइ । 11. "पवपकए: Sum. h in पयपंकए। (10)1, B कण्णह: P कण्णहो। 2. A किय। 3.9 घारे। 4. तउत्तरणु। 5. B सीरी। 6. BP माहिंद.17.A पुक्खलइदेसि। 8. Kणवल्याहि । 9. पयणसुंदरी। 10.5 लहुअय।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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