________________
1
1
'
86.11.10]
महाकइपुप्फयंतविरकर महापुराणु
( 11 )
इय गोवीयणवण सुगंतु संभासिउ । मेल्लिवि गव्यभाउ परिपालिउ थणथपणेण जाइ कइवयदियहई तुहुं जाहि ताम इस भणिवि तेण चिंतविद्ध' दिष्णु आलाविय भाविव नियमणेण पट्टविउ णंदु महुसूवणेण
सहुं वसुए
कीलइ परमेसरु दरहसंतु ।
इहजम्महु महुं तुहुं ताय ताउ । वीसरमिण खणुं मि जसोय माइ । पक्खिकुलक्खउ करमि जाम । वरवसुहार" दालिंदु छिष्णु । मोवालय पूरिय कंचणेण । ओहामियदेवयपूयणेण ।
सहुं परिवणेण हरिकरिजणेण* ।
सहुं हलहरेण घत्ता - सउरीणयरि पट्टु अहिसुरणरेहिं पोमाइउ । भरधरित्तिसिरीइ हरि पुप्फयंतु अवलोइउ ॥11॥
इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फयंतविरइए महाभव्यभरहाणुमणि महाकव्ये कंसचाणूरणिहणणो णाम छासीतिमो" परिच्छेउ समत्तो ॥ 6॥
[ 117
5
सठ महापुरुषों के गुणों और अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित
एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में कंस-धाणूर-हनन नाम का
छियासीय परिच्छेद समाप्त हुआ।
10
( 11 )
इस प्रकार गोपीजनों के बचन सुनते हुए, कुछ मुस्कराते हुए परमेश्वर क्रोड़ा करते हैं। गर्वभाव छोड़कर उन्होंने सम्भाषण किया - हे तात! इस जन्म के तुम मेरे पिता हो। जिसने अपने थलथलाते स्तनों से मेरा परिपालन किया उस यशोदा माँ को मैं एक पल के लिए नहीं भूल सकता। कुछ दिनों के लिए आप जाएँ, तब तक के लिए जब तक मैं प्रतिपक्ष का नाश कर लूँ। यह कहकर उन्होंने मनचाहा दान किया, श्रेष्ठ धनधारा से दारिद्र्य दूर कर दिया। अपने मन से बातचीत कर और चाहकर उन्होंने ग्वालों को सोने से लाद दिया । देवी पूतना को तिरस्कृत करनेवाले मधुसूदन ने नन्द को भेज दिया और स्वयं वसुदेव के साथ, हलधर के साथ, परिजनों अश्वों तथा गजों के साथ
धत्ता - शौरी नगर में प्रवेश करने पर नागों, सुरों और नरों ने उनकी वन्दना की । भारतभूमि की लक्ष्मी ने नक्षत्रों के समान आभावाले श्रीकृष्ण का साक्षात्कार किया।
( 11 ) । 13 संभातिथि मेल्लिउ 2 B यणि थण्णेण । 3. B बीसरिमि। 1. B खणु यि । 5. S चित्तवि। 6. PS वसुधारए। 2. AP बोलें आकऱिसिक्पूयणेण । HR सुबह 9. APS हरिकरिमरेण । 10. A श्यासमोः P छायासीमो 5 छासीतितमो।