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महाकइपुप्फयंतविस्य महापुराणु
पत्ता - जाणिवि जायवणाहु जियगोत्तहु मंगलगारउ । दिउ "णिवणियरेहिं दामोयरु बइरिबियार ॥9॥
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कण्ण समाण को वि पुत्तु
दुद्धरभररणधुरदिष्णखंधु' अजिवि णियलई गयवरगईइ अहिदियजिणवरपायरेणु कइवयदियहहिं रइकीलिरीहिं' पंगुत्त ं पदं माहव सुहिल्लु एवहिं महुराकामिणिहिं रतु कवि भणइ दहिउ पंथंतिबाई " लवणीयलित्तु करु तुज्झु लग्गु तुहुं पिसि णारायण सुयहि नाहिं सो सुयरहि किं ण पउण्णवंछु'
संजणउ' जणणि विद्दवियसत्तु । उद्धरिय जेण निवड़ंत बंधु । सहुं माणिणीइ पोमावईइ । महुरहि संणिहियउ उग्गसेणु । बोल्लाविउ पहु गोवालिणीहिं । कालिंदितीरि मेरउं कडिल्लु । महं उप्परि दीसहि अथिरचित्तु । तुहुं मई धरियउ उन्मंतियाइ । कवि भणइ पलोयइ मज्झ मग्गु । आलिंगिउ अवरहिं गोवियाहिं । संकेयकुडगुड्डीणरिंछु ।
वत्ता का वि भणइ णासंतु उद्धरिवि खीरभिंगारउ ।
कि बीरियड जज्जु जं मई सित्तु भडारउ ॥
[ 86.9.11
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पत्ता - यादवनाथ को अपने कुल का कल्याणकर्ता जानकर शत्रुसंहारक दामोदर की राजसमूह द्वारा वन्दना की गयी।
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कृष्ण के समान कौन पुत्र है, शत्रुसंहारक दुर्धर भारवाले रण की धुरा में कन्धा देनेवाले जिसे माँ ने पैदा किया हो ? उन्होंने गजवर के समान चालवाली मानिनी पद्मावती के साथ श्रृंखलाएँ तोड़कर, जिनवर के चरण कमलों का अभिनन्दन करनेवाले उग्रसेन को मथुरा नगरी में स्थापित किया। कुछ दिनों तक कृष्ण के साथ क्रीड़ा करनेवाली ग्वालिनों ने कृष्ण से कहा- हे माधव ! तुमने मेरा सूक्ष्म कटिवस्त्र यमुनातीर पर छिपाया था, लेकिन इस समय आप मथुरा की स्त्रियों पर आसक्त हैं। हम लोगों पर अस्थिर चित्त दिखाई दे रहे हैं। कोई एक कहती हैं- दही मथते हुए उद्भ्रान्त होकर मैंने तुम्हें पकड़ लिया था और मेरा नवनीत से लिप्त हाथ तुम्हें लग गया था। कोई कहती है मेरा रास्ता देखते रहने के कारण हे नारायण ! तुम रात्रि भर नहीं सो सके, दूसरी- दूसरी गोधियों के द्वारा तुम्हारा आलिंगन किया गया। संकेत-वृक्ष के लिए जाने को उत्सुक और सम्पूर्ण है इच्छा जिसकी ऐसे तुम उसे याद नहीं करते ?
पत्ता- कोई कहती है- क्षीरभृंगारक उठाकर भागते हुए तुम्हारा जो मैंने अभिषेक किया था; क्या उसे तुम आज भूल गये ?
11. AP for:
( 10 ) 1. 13 मंजणिउ 2 A Als भरघुरदिष्णकंधुः B दुद्धरमडरणदिण्णखंधु 3. B Als. अहिदिय । . AP 'कीलणीहि: B कीलरीहिं । 5. AP पहिल। 6. 4 वी वत्यु AP उद्धर्मि 9 AP मई अहिंसितुं भहार।
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