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महाकइपुष्फयंतविश्यउ महापुराणु
[86.7.24
बाहाइ' बाहु
गाहेण माहु। दिट्ठीइ दिट्टि मुट्ठीइ मुट्ठि।
25 चित्तेण चित्तु
गत्तेण गत्तु। परिकलिवि तुलिवि उल्ललिवि मिलिवि। तासियगहेण
सो महुमहेण। पीडिवि करेण
पेल्लिवि उरेण। रुभिवि छलेण
मोडिउ बलेण। मणि" जणियसल्लु चाणूरमल्लु। कउ मासपुंजु'
णं गिरिणिउंजु। गेरुयविलित्तु
धिप्पतरत्तु। महियलणिहित्तु
पंचत्तु पत्तु। घत्ता-चिणिवाइवि चाणूरु पहु बहुदुव्ययणे” दूसिवि।
35 पुशु हक्कारिज क ह ल ५ रूचि ॥7॥
(8) णवर ताण दोण्हं भुयारणं जाययं जणाणंदकारण। सरणधरणसंवरणकोच्छर भिउडिभंगपायडियमच्छरं। करणकत्तरीबंधबंधुरं
कमणिवायणा वियवसुंधरं। मिलियवलियमहिलुलियदेहयं णहसमुल्ललणदलियमेहयं । पाकर, अवरुद्ध कर उन्होंने उसे बाँध लिया। बन्ध से बन्ध, रुन्ध से सन्ध, बाहु से बाहु, ग्राह से ग्राह, दृष्टि से दृष्टि, मुट्ठी से मुट्ठी, चित्त से चित्त और गात्र से गात्र मिलाकर, तौलकर, उछलकर, मिलकर ग्रहों को सतानेवाले श्रीकृष्ण ने हाथ से पीड़ित कर, उर से ठेलकर, छल से रोककर, शक्ति से उसे मोड़ दिया, मानो मन में शल्य उत्पन्न करते हुए चाणूर पहलवान का उन्होंने ढेर बना दिया, मानो गेरु से लिप्त पहाड़पुंज हो। खन से लथपथ और धरती पर पड़ा हआ वह मत्य को प्राप्त हो गया।
पत्ता-चांणर का पतन कर और राजा कंस की अपशब्दों से निन्दा कर. कष्ण ने काल की तरह कपित होकर कंस को ललकारा।
(8) उन दोनों का बाहुयुद्ध लोगों के लिए आनन्द का कारण हुआ। शरण, धरण और संवरणों (रोक देने) से उत्सुकता पैदा करना, भुकुटियों के भंग से मत्सर प्रगट करना तथा करण, कर्तरी बन्ध से सुन्दर होना, पैरों की चपेट से धरती पर झुकाना, मिलने और मुड़ने से शरीरों का धरती पर लुढ़कना, आकाश में उछलना
और मेघों को दलित करना, महान् नगरजनों के जोड़ों को सन्तुष्ट करना, नाना प्रकार के आभूषणों का गिरना, 14. P बाहेण बाहु। 15. B पेल्लवि। . APS माग | 17. P दुव्यपणेहि। 18. P हक्कारिदि।
(8)1. A बंधुबंधुरं। 1. A णापिय ।