SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112 ] महाकइपुष्फर्यतविरयड महापुराणु [86.6.1 मउल्लियगडु' पसारियसुंदु। सरासणवंसु सयापियपंसु। घणंजणवण्णु समुण्णयकण्णु। दिसागयभिंगु धराधरतुगु। महाकार तेण जसोयसुएण। पडिच्छिउ एंतु णियविवि' दंतु। सिरग्गि तह त्ति गओ' हउ झत्ति। भएण गयस्स विसागु गयस्स। बलेण समत्थि सिरीहरहत्थि। विरेहइ चारु जसो इच सारु। रिस्स पयंडु जमेण व दंडु पयासिङ मुरारि णिसीहु। घत्ता-अप्पडिमल्लहु' मल्लु पडिभडमारणमग्गियमिसु । अक्खाडइ अवइण्णु हयबाहुसद्दबहिरियदिसु ॥6॥ सुयपक्खु धरिवि ओहामियक्कु परिछेउ करिवि। संणहिवि थक्कु। (6) आई गण्डस्थलवाला, सूंड फैलाए हुए, धनुष वंशीच धूल को सदैव चाहनेवाला, घन और अंजन के रंग का समुन्नत कर्णवाला, दिशागज के आकारवाला, पर्वत की तरह ऊँचा, ऐसे उस आते हुए महागज को यशोदा के उस पुत्र ने ललकारा और दाँत खींचकर तथा सिर पर ताड़ित कर शीघ्र गदा मारा। भय को प्राप्त उस हाथी का वह सुन्दर दाँत, बल में समर्थ श्रीकृष्ण के हाथ में ऐसा शोभित है, जैसे वम ने अपना दीर्घदण्ड प्रकाशित किया हो। मुरारी नृसिंह (महामल्ल), ___ धत्ता-जो अप्रतिमल्लों के मल्ल प्रतिभटों को मारने का बहाना ढूँढ़नेवाले, अपने बाहुशब्द से दिशाओं को अधीर कर देनेवाले हैं, ऐसे कृष्ण अखाड़े में उतरे। पुत्र के पक्ष को धारण कर अपने पक्ष का विचार कर, सूर्य को पराजित करनेवाले, गजलोलगामी वासुदेव (6) 1. मोल्लिय'। ५. "सोंड़ ! १. "कंतु। 4. 2 मिनहिविः पियट्टिवि। 5. Aऊ गओ झत्ति हओओ ति। 6. Kणिशीहु। 7. PS मालह। 8. HAS हयवहुसद : PS दमाहु। (7)1. ऊहामिव ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy