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________________ 110] महाकइपुप्फर्यतविरयड महापुराणु [ 86.3.7 10 गउ णासिवि विवरंतरि पइटु जयसिरिइ" विहूसिउ झत्ति विठ्ठ। जलि कीलइ अमरगिरिंदधीरु "कल्लोलुप्पीलियविउलतीरु' । 'विहडियसिप्पिउडसमुग्गयाई मुत्ताहलाई दसदिसु' गयाई। मीणउलई भयरसमंथियाई ण सत्तुकुडुंबई दुत्थियाई। घत्ता-उडिवि गणि गयाइं कीलतहु हरिहि ससंसहु । दिट्टई हंसउलाई अट्ठियई णाई तहु कंसहु ॥3॥ भसलउलई तारदिस गुमुगमति णं कसमरणि बंधव रुयति। कण्हहु तेएं जाया विणीय रंगति कंक णं पिसुण भीय। कमलाई अलीढई तेण केंव खुडियई अरिसिरकमलाई जेंव। हरियई पीयई लोहियसियाई महुरापुरणाहहु' पेसियाइं। पयपब्भदुई मलिणंगयाई खलविहिणा सुकयाई व हयाई। पडिवक्खभिच्चकरपेल्लियाई बद्धाई घरंगणि घल्लियाई। णलिणाई णिवेण णिहालियाई णं णियसयणइं उम्मूलियाई । अण्णहिं दिणि 'भुवबलवूढगाव' । हक्कारिय सयल वि गंदगोय। परजीवियहारणु मंतगुज्झु पारद्धउं राएं मल्लजुज्झु। कर दिया। नष्ट होकर वह बिल के भीतर चला गया और विष्णु (कृष्ण) शीघ्र ही विजयलक्ष्मी से विभूषित हुए। अमर गिरिवर की तरह गम्भीर और लहरों से विशाल तट को उत्पीड़ित करते हुए वह जल में क्रीड़ा करते हैं। विघटित सीपियों के सम्पुटों से निकलते हुए मोती दसों दिशाओं में बिखर गये। मछलियों के कुल भयरस से पीड़ित हो गये, मानो दुःस्थित शत्रु-कुटुम्ब हो। ____घत्ता-प्रशंसा-युक्त हरि के जलक्रीड़ा करने पर, उड़कर आकाश में गये हुए हंसकुल कंस की हड्डियों के समान प्रतीत होते हैं। भ्रमरकुल चारों दिशाओं में गुनगुना रहे हैं, मानो कंस की मृत्यु पर उसके भाई रो रहे हैं। कृष्ण के तेज से विनीत हुए बगुले इस प्रकार चलते हैं, मानो डरे हुए दुष्ट हों। उसने कमलों को इस प्रकार ले लिया, मानो शत्रुओं के सिरकमल तोड़ लिये गये हों। हरे, पीले, लाल और सफेद कमल मथुरापुरी के राजा के लिए भेज दिये गये। वे ऐसे लगते थे, मानो दुष्ट विधाता के द्वारा आहत, पदभ्रष्ट मैले-कुचैले शरीरवाले पुण्य हों। शत्रु के भृत्यों के द्वारा पीड़ित, बँधे हुए वे घर में डाल दिये गये। राजा कंस ने उन कमलों को इस प्रकार देखा, मानो उसके अपने स्वजन उखाड़ दिये गये हों। एक दूसरे दिन, भुजबल में बढ़ा हुआ है गर्व जिनका, ऐसे समस्त नन्द गोपों को बुलवाया और राजा ने गुप्त मन्त्रणा कर दूसरे के जीवन का अपहरण करनेवाला मल्लकुद्ध प्रारम्भ किया। B. A जयमिरिए। 9. APS "उप्पेल्लिय। 10. AP "विरलपीस । 11. PS विडिय। 12. A "सिप्पिउल"। 13. P दसदिसि।।4. B कुडंबई P कुटुंबई। (4) 1. AP महराजरि"; " पहुरापुरि । 2. A णिमूलियाई: B जिम्मूलिपाई। 3. B°भुव। 4. ' -कढ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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