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महाकइपुष्फयंतबिरयउ महापुराणु
| 85.25.5
को वि ण संचालइ जे थामें ते महुमहणे जयसिरिकामें। उच्चाइवि सुरकरिकरचंडहिं पत्थरखंभणिहियभुयदंडहिं'। अरिवरणरणियरें परियाणिउ गंदगोउ लहु जणणिइ णीणिर। आउ जाहुं हो पुत्त पहुच्चइ गोउतु सुण्ण सुइरु ण मुच्चइ । एव भणेप्पिणु कण्हपया
परिमुक्काई ताई भयभावें। मलवज्जिइ महिदेसि समाणइ पुणरवि तेत्यु जि ठाणि चिराणइ। आणिवि गोविंदु वि गोविंदु वि थियई ताई "दइउ जि अहिणदिवि । घत्ता-सुपसिद्ध भरहि सो गंदगो" गुणराहहिं ।
पुष्फयंतसमहि वणिज्जइ वरणरणाहहिं ॥25॥
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इय महापुराणे तिसहिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुप्फयंतबिरइए महाभष्यभरहाणुमण्णिए महाकब्बे णारायणबालकीलावण्णणं
___णामपंचासीमो परिच्छेउ समत्तो ॥85॥
की सैंड के समान प्रचण्ड अपने भुजदण्डों के द्वारा उटाकर रख दिया। शत्रुवर-समूह ने यह जान लिया, तब नन्दगोप को शीघ्र माँ ने प्रेरित किया- "हे पुत्र ! बहुत हुआ, आओ चलें, गोकुल को बहुत समय तक सूना छोड़ना ठीक नहीं।"
इस प्रकार विचारकर वे लोग कृष्ण के प्रताप से भय से मुक्त हो गये। मल से रहित समतल महीदेशवाले अपने उसी पुराने स्थान पर आकर गोविन्द और गोप-समूह रहने लगा। देव का अभिनन्दन कर वे भी वहीं स्थित हो गये। __ घत्ता--भारत में गुणशोभा से युक्त जो प्रसिद्ध नन्दगोप हैं, उनका नक्षत्रों के समान उज्ज्वल श्रेष्ठ नरनाथों द्वारा वर्णन किया जाता है।
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों ने गुणों और अलंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित
और महाभय भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य में नारायण-लीलावर्णन
नाम का पयासीवौं परिच्छेद समाप्त हुआ।
Er. AP संचालइ णियथा। 7. Bधंभ'TH.Aपई मुक्काई। 9. B महिदेस। 10. A देत जि: BS दइबु जि। 11. Bणंदगोठ्ठ; गंदगोउ, गंदगोचुः Als. गंदगोउ। 19. P पुष्पदंत । 14. A बालकीडा। [5. पंचासीतितपो।