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________________ 85.25.41 महाकपुष्फयंताविरयड महापुराणु [ 105 कि आओ सि एउं कि रइयर गोउलु तेरउं भिल्लहिं लइयउं। णियसुहडत्ततेयपरियरियउ तं णिसुणिवि पुराउ णीसरियउ। 'वसहविंदढेक्कारविसहि लग्गउ गोवउ गोउलवहि। अवरहिं गपि पहेण तुरंतहिँ कंपियदेहएहिं सयभंतिहि । सुयवित्तंतु पिउहि समईरिउ चंपिउँ70 चाउ संखु आऊरिउ । विसहरवरसयणयलु णिसुभि तं आयण्णिवि पुत्तवियंभिउं । णवउ कहिं मि रायमयतासिउं गोउलु अण्णत्तहिं आवासिउं। घरु आयउ रोमंचियगत्तइ" अवलंडिउ हरिसंसुयणेत्तइ । .. नारद मशिद हार पर मुक्कर पुत्तु "दुवालिइ। पत्थिवसयणयलि किह चडियउ डिभयकेलिइ ॥24॥ (25) दुवई–णदें णंदणिज्नु' णियणंदणु ससणेहें णिहालिओ। पाहुणयाई जाहुं सुयबंधुहं इय वज्जरिवि चालिओ ॥ छ । तावग्गइ पारद्धृ णिहेलणु तहि मि परिहिउ महिवइरक्खणु। मिलिय जुवाण अणेय महाबल' पायपहरकंपावियमहियल । .... समूह के शब्दों के विशिष्ट गोकुल के रास्ते जा लगा। दूसरों ने मार्ग से जाकर तुरन्त काँपते हुए शरीर और डर से पुत्र का समाचार पिता को दिया कि इसने धनुष चढ़ा दिया, शंख पूर दिया, नागशय्या-तल को नष्ट कर दिया। पुत्र के इन विस्मयों को सुनकर (पिता सोचता है)-राजभय से त्रस्त मैं (समझ लो) नष्ट हो गया, अब कहीं और अपना आवास बनाऊँगा। बालक घर आया, और रोमांचित शरीर एवं हर्ष के आँसुओं से भरे हुए नेत्रोंवाली माँ ने उसका आलिंगन किया। पत्ता-माँ ने हरि से कहा- "हे पुत्र ! कुचाल से तुम्हारा पिण्ड नहीं छूटा, तुम शिशुक्रीडा से राजा की नागशय्या पर क्यों चढ़े ? ( 25 ) नन्द ने बढ़ते हुए अपने पुत्र को स्नेह से देखा, और वह पुत्र-बन्धुओं से यह कहकर चला कि चलो पहुनाई कर आयें। तब उसने मार्गमध्य में आवास बनाना शुरू किया। सजा के रक्षक वहाँ भी उपस्थित थे। अनेक महाबलवान युवक इकट्ठे हुए जो अपने पैरों के आघात से धरती हिला देते थे। जिन पाषाण-खम्भों को अपनी शक्ति से कोई भी नहीं हिला सका, उन्हें विजयश्री की कामना रखनेवाले श्रीकृष्ण ने ऐरावत 5. P आयो सि। 6. P सुहडत्तु। 7. ABS बसहयं । 8. Hoविसहहि। 9.A भयवंतहिं; PK सपतिहि and glass in K उत्पन्नशतसंदेहः। PS सयमंतहि AK. 'भयभंतहि against Mss. 10. AP चषित। 11. Sआओरिउ। 12.Aगत्तउ। 13. A हरिसुव"हरि अंसुव । 14. A गणेहड। 15. P दुयालिए। 15. A कह। (25) 1. AP बंदणिज्ज । 2. P सांसणेहें। 3. A महिवइ तहि पि परिविउ रक्खणु। 4. A यहाभड। 5. Aणहयल।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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