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________________ 15 85.23.31 • महाकइपुप्फयतविरयउ महापुराणु [ 103 जिणघरसुरदिसि जखीमंदिरि तहिं मिलियइ गरणियरि णिरंतरि। दिट्ठी णायसेज्ज दिवउं धणु दिउ पंचयष्णु गुरुणीसणु। गोविदं मयवंत सुदुम्मह दिट्ट चडत पुरिस णाणाविह। पडिय भुयंगमजतें पीडिय फणताडियों अच्छोडिय मोडिय। ता हरिणा फणि तणु व वियप्पिउ । कुप्परकरकडिदेसें' चप्पिउ। लइउ संखु णं जसतरुवरफलु उरसरि तासु अहिहि णं सयदलु । दीसइ धवलु दीहु णं मउलिउं णावइ कालिंदीदहि विलुलिउं। अरिवरकित्तिवेल्लिकंदो इव करसहुँ धारय चंदा इव । मुहणीलुप्पलि हंसु व सारिउ केसवेण कंबुउ'' आऊरिउ। पेच्छालुयमणवउलु' पुलइउं पायंगुट्टएण धणु वलइउं। घत्ता-एक्कु ण चाउ जागे अण्णु वि णयमग्गे आयउं। गुणणवणे सहइ सुविसुद्धवंसि जो जायउ ॥22॥ (23) दुवई-'विसहरसयणरावजीयारवजलरुहरवपऊरिय । भुवणं ससरि सदरिगिरिवलयमहो णिहिलं पि जूरियं ॥ छ । विहडियफुडियपडियघरपंतिहिं मुडियालाणखंभगयदंतिहिं। में यक्षीमन्दिर में नरसमूह निरन्तर एकत्र हो रहा था। वहाँ उन्होंने नागशय्या देखी, धनुष देखा और भारी स्वरवाला पांचजन्य शंख देखा। गोविन्द ने मदवाले दुर्दमनीय नाना प्रकार के लोगों को चढ़ाते हुए देखा, जो सर्पयन्त्र से पीड़ित होकर गिर पड़े, फन से ताड़ित और आस्फालित होकर मुड़ गये। तब कृष्ण ने साँप को तिनके के समान समझकर अपने हाथ की हथेली से उसके कटिभाग को चाँप लिया। उन्होंने शंख को इस प्रकार ले लिया, मानो यशरूपी वृक्ष का फल हो, या मानो उस साँप के उर रूपी सरोवर में (खिला) शतदल कमल हो, धवल, दीर्घ और मुकुलित जिसे मानो यमुना सरोवर से तोड़ लिया गया हो। शत्रुप्रवर की कीर्तिरूपी लता के अंकुर के समान वह ऐसा लग रहा था मानो उसके हाथरूपी राहु ने चन्द्रमा को पकड़ लिया हो। उसका मुखरूपी नीलकमल ऐसा शोभित था, मानो हंस स्थापित कर दिया हो। केशव ने शंख बजा दिया । दर्शक मानवसमूह पुलकित हो उठा। उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से धनुष को मोड़ दिया। ___घत्ता-जग में वह अकेला धनुष ही नहीं था, दूसरा भी नीतिमार्ग से आया था, गुणों की नम्रता (डोरी की नम्रता) से वह शोभित, सुबिशुद्ध वंश में उत्पन्न हुआ था। (23) नागशय्या का शब्द, प्रत्यंचा का शब्द और शंख के शब्द से पूरित विश्व नदियों, घाटियों और पर्वत-मण्डलों के साथ पूरित हो उठा, यह आश्चर्य है। गृह-पंक्तियाँ विघटित होकर बिखरकर गिर गयीं। हाथियों ने अपने S.APS गणियर!M.A मनाते । 5. AP फडताडिया फणिताडिय। 6. Pअच्छोड़िय।7.AP कोप्परकरकडियलसंघप्पिान कोप्पर18.K कालिंदिदहि । 9.AP किर रा य । 10. PS धरिउ। 11. A कंटऊ ओसारिउ। 12, B पिडालुवः। 18. A माणच अवलोइट। (23) 1. A सयणचाव। 2. A 'जलहरवपूरिय: B "जलमहरावकरियं ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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