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________________ 70, 20.4] पुस-महापुरा कवि सिंच पेम्मले भूमि जड़ इच्छ कह व धरित्तिसामि दारें भत्तारुण जाहुं देइ मणि का वि विरइ चंदवण णं तो जोयमि उब्भिवि करग्ग कर मउलिवि सण कर वि पोमु कवि उरु पहि विडिउ ण वेइ जोयंति रायसुयज्यलतोंडु पत्ता - कवि विसिवि बोल्लह चंदमुहि सीयइ काई व उत्थउं ॥ जेणेह लद्धरं 'पइरयणु दरिसियकामात्य in अodes बुत्त जाहि माइ वयणें बहुणेहपवत्तणेण जइ एहु ण इच्छद विउलरमणि इय पुररमणीयणजूरणेण कवि चित एवहि घरु ण जामि। तो जियमि माइ सच्चजं भणामि । पायारु किं पि अंतरु करेइ । तलहत्थि ण जाया मज्झु णयण । गच्छंतु सुह्य सुसारमग्न । आवेसमि जावहि सुवइ पोमु । कवि भिक्खाचारिहि भिक्ख देइ । अत्तर्हि घल्लइ कूरपिंडु | 20 सम्गेज्जसु गाहहु तणइ पाइ । हरि आणहि महु दूयत्तणेण । तो मार मारु मरालगमणि । सज्जनहं मणो रहपुरणेण । [61 है । कोई प्रेमजल से धरती को सिंचित करती है। कोई सोचती है कि मैं अब घर नहीं जाऊँगी, और कहती है कि है माँ, धरती के स्वामी यह यदि किसी प्रकार मुझे चाहते हैं तभी मैं जीवित रह सकती हूँ। सच कहती हूँ, पति किसी महिला को जाने नहीं देता और परकोटे पर कोई आड़ कर देता है । कोई चन्द्रमुखी भी अपने मन में अफसोस करती है कि हथेली में मेरे नेत्र क्यों नहीं हैं, नहीं तो दो हाथ ऊँचे करके मैं देख लेती। शुभ श्रेष्ठ मार्ग में जाते हुए उन दोनों सुभगों को हाथ ऊँबे करके देख लेती हैं। कोई अपने हाथ को बन्द कर राम से संकेत करती हैं कि जब कमल मुकुलित हो जायेंगें, तब मैं आऊँगी। कोई पथ पर गिरे हुए अपने नूपुरों को नहीं जान पाती। कोई भिक्षा मांगने वाले को भिक्षा देती है, लेकिन उन दोनों राजपुत्रों के मुखों को देखती हुई भात का समूह दूसरी जगह डाल देती है। 10 घत्ता - कोई चन्द्रमुखी हँस कर कहती हैं कि सीतादेवी ने ऐसा कौन-सा व्रत किया है कि जिससे उन्होंने कामदेव की अवस्था को प्रकट करने वाला पति रत्न प्राप्त किया । 5. A मणि सविसूर कवि चंद" P मणि सुविसू रद्द कवि चंद° 6 AP हलि हत्यि ण 7. A गच्छंत; P गच्छति । 8. AP अहिंसा धल्लई 9. AP पय रथणु । (20) एक और ने कहा- हे माँ, तुम जाओ और स्वामी के पैरों से लगो । अत्यन्त स्नेह से भरपूर वचनों के द्वारा राम को यहाँ ले आओ । यदि यह इस विशाल रमणी को नहीं चाहता तो उम हंस की चाल वाली को कामदैत्य मार डालेगा। इस प्रकार नगर की स्त्रियों को पीड़ा उत्पन्न करते हुए तथा सज्जनों के मनोरथों को पूरा करने वाले ये दोनों भाई, दधि, अक्षत और निर्माल्य को 5
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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