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________________ 62] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण दहिब हुसेभर' नि पियवय कि विवि पाहुडेण fafa सुहिसंबंधपयासणेण किवि हें कि विभुबलि घित्त भार पड्डु बेवि । कि विदुवणेण रणुभदेण । किवि वसिकय वित्तविहसणेण । वणवाल' चंड मंडलिय जित्त । पत्ता - मयरहरहु मनु दूसणु जिणहु अमयहु विसु कि सीसइ ॥ गुणवंतहं दस रहतगुरुहहं दुज्जणु को वि ण दीसह || 201 अच्छति बेविते तेत्यु जाव वरकणय वीढसंणिहिपाउ अत्याणि सिउ सामदेह करचालियाई चमरई पडंति पाढय पढति तहि गड गडति गिज्जति गेय सरठाण लग्ग पडिहारहि अणिबद्धरं चवंतु विष्णप्पइ भष्णइ जीय देव 21 एतहि लंकहि दवयणु ताव । सीहासगिरायाहिराउ । अवइण्णु महिहि णं काममेहु । कप्पूरपउरधू लिउ घुषंति । वाइत्तताल तेत्यु जि घडति' । णच्वंति असेस विदेसिमग्ग' | यिमिज्जइ लोउ वियारवंतु। अमर वि कति कमकमलसेव । [70.20. 5 5 10 3 ग्रहण कर राजदरबार में प्रविष्ट हुए। कुछ को प्रिय वचनों से, कुछ को उपहारों से, कुछ को रण से, कुछ को उत्कट दुर्वचनों से, कुछ-कुछ को अच्छे संबंधों के प्रकाशन से, कुछ को वृत्तियों के भूषण से, इस प्रकार उन्होंने लोगों को वश में किया। कुछ को स्नेह से, कुछ को बाहुबल से पराजित किया। इस प्रकार उन्होंने वनपाल और प्रचंड मांडलिक राजाओं को जीत लिया। ( 20 ) | AP सिद्धस्य क्खयसेसाउ 12. A बलवाल । ( 21 ) 1 AP जवकणय 2. AP चलति । 3. A घुलंति । 4. A देसमग्ग । 5. P जणवइ । पत्ता- समुद्र में मल, जिन भगवान् में दूषण और अमृत में विष नहीं होता । इसी प्रकार गुणवान दशरथपुत्रों को कोई भी व्यक्ति दुर्जन दिखाई नहीं दिया। (21) नगरी में, जिसने सुन्दर स्वर्ण अग्रभाग पर बैठा था । श्याम था, मानो धरती पर काम मेघ उत्पन्न कर्पूर से प्रचुर धूल उस पर गिरती थी । जब वे दोनों इस प्रकार वहाँ रह रहे थे। तब यहाँ लंका पीठ पर अपना पैर रखा है, ऐसा राजाधिराज रावण सिंहासन के शरीर सिंहासन पर बैठा हुआ वह ऐसा मालूम हो रहा हुआ हो। हाथों से चलाये गए चमर उस पर गिरते थे। पाठक चारण पढ़ते, नट नाचते, वाद्यों का ताल भी वहाँ रचा जा रहा था, स्वर और ताल से युक्त गीत गाये जा रहे थे, और सब लोग देशी करें से नाच रहे थे, प्रतिहारियों के द्वारा अंट-शंट बोल कर, विकार युक्त लोग नियंत्रित किए जा रहे थे। यह निवेदन और कथन किया जा रहा था है देव, आप जीवित रहें । देवगण भी आपके चरण कमलों की सेवा करते हैं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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