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________________ 60] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण सुरमहिहर उत्तगसिंग' । विज्जिज्जमाण चलचामरेहिं । पेल्लिज्जमाण कामिणिचणेहि । सुंदर सुबला केवकर्याहिं पुत्त । रमणीयसहित यंत । वाणारसि बिणि दि बीर पत्त । दहिदो वह सिकलसुप्पलेहि । पइति णयरि णं कामवाण ॥ मणिeउडपट्टालिंगियंग‍ सेविज्माण परखेरेहिं जोइज्माण जणवयजणे ह अलिकसणपीय णिवसणणिउत्त दियहि बंधु ते जंत जंत पहचाइय गय सुहजणणपत धयमालातोरणमंगलेहिं णणणायरियहिंदी समाण पत्ता - जणु बोल्लइ दरजे कंची कलाव गुप्पंतु "पहि कवि मेल्लइ कोतल फुल्लदामु का विणजुयलउं विहलु गणि' कवि दाइ कंकणु का विहारु पत' कवि परिहाणु धरइ इह ससहरु आवद्द || पुरणारीयणु" भ्रात्रई ॥18॥ 19 णीसस का वि जोयंति रामु हा एउ ण लक्खणणहहिं वणिउं । कवि ऊरुलु' कवि मुहबियारु । कविकट्ठदिट्टि जोयंति मरइ । [70. 18.3 S को प्राप्त हैं, जिनके दिव्य शरीर मनि-मुक्ताओं की पदावली से आलिंगित हैं, जो मानो ऊँचे शिखरों वाले सुमेरू पर्वत के समान हैं, ऐसे वे मनुष्य और विद्याधरों द्वारा सेवित चंचल चामरों से हवा किये जाते हुए, जनपद लोगों के द्वारा देखे जाते हुए कामिनिजनों के द्वारा प्रेरित किए जाते हुए जो भ्रमर के समान काले और पीले कपड़े पहने हुए थे – ऐसे सुबला और कैकयी के पुत्र अत्यन्त सुन्दर थे । इस प्रकार दिन-दिन जागते हुए रमणीक प्रदेशों में विश्राम करते हुए वे पूज्य पिता के द्वारा दिये गये वाहनों वाले तथा पथ पर हाथियों को प्रेरित करते हुए वे दोनों वीर वारासी नगरी पहुँचे । ध्वजमालाओं, तोरणों, मंगलों, दधि और दुर्वाओं और श्वेत. कलश पर रखे गए कमलों के साथ अनेक नागरिकाओं द्वारा देखे गए वे दोनों नगरी में ऐसे प्रविष्ट हुए जैसे कामवाण हों । 10 धत्ता- लोगों ने कहा- यह दशरथ के सबसे बड़े बेटे हैं, जो अपने भाई के साथ आए हैं, तब अपनी करधनियों को छोड़ती हुई, पुर की स्त्रियाँ पथ पर दौड़ने लगतीं । 3. P सुप्पहा । 4. AP उत्तुंग । 5. P रवणीय" । 9. A पयसंति | 10 A एहु सहोयर 11. A गुप्पंति पहे। (19) कोई अपनी चोटी से फूलों की माला छोड़ देती है, कोई राम को देखती हुई निःश्वास लेने लगती है । किसी ने अपने स्वनस्थल को फलहीन समझा और कहा कि इनको लक्ष्मण के नखों ने घायल नहीं किया 1 कोई कंगन दिखाती है, कोई हार। कोई उरुतल दिखाती तो कोई मुखबिंबावर कोई अपनी खिसकती हुई धोती धारण नहीं कर पाती। कोई कष्ट दृष्टि से देखती हुई मर रही (19) 1 A मुणिउं 12. A हो। 3. AP उरयतु। 4 A पयलंतु का वि 6. P वाराणसि । 7. P धीर 8 A दहिर्वाह । 12. AP पुरे णारी" ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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