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________________ 581 [70. 15.12 महाकवि पुष्पयन्त विरचित महापुराण घत्ता–ता दसरहपयपंकय णविवि विहसिवि रामें वुच्चइ ।। संताणकमागय तुह णयरि वाणारसि कि मुच्चइ 1115॥ 16 णासिज्जइ कि सो कासिदेस सुणि ताय रायसत्थोवएसु । गुरुगय णियगय णिव दुविह बुद्धि बुद्धीइ पंचविह मंतसिद्धि । दीसंति जाइ सछिद्दवेरि सानंतराति साहति तरि । विहुरे वि हु अणिहालियदिसेण उच्छाहसत्ति पुणु पोरिसेण । पहुसत्ति कोसदंडेहि देव एयइ विणु महियल बहइ केव । जाणेवा अवर अलवलाह चत्तारि उवाय धरत्तिणाह। बोल्लिज्जइ पहिलारउ जि सामु पियश्यण जीवजणियाहिराम। बीयउ पुणु सीकिज्जंति किच्च संमाणिवि वइरिविरत्त भिच्च । घत्ता-ते थद्ध लुद्ध अवमाणणिहि भीरु कहंति विवक्खहु ।। णियरायहु केर दुच्चरिउ वियलियपह परिरक्खहु ।।16।। 10 उवदाणु वि हरि करि हेम रयण दिज्जइ जइ लब्भइ को वि सयणु । अवयारु देसपुरगामडहणु सो दंडु भणति वरारिमहणु । घता-तो दशरथ के चरण-कमलों को नमस्कार कर राम ने कहा-आपके द्वारा कुल परम्परा से प्राप्त नगरी क्यों छोड़ी जाती है ? (16) उस काशी देश को क्यों छोड़ा जाय ? हे आदरणीय, राजनीति-शास्त्र का उपदेश सुनिए। हे राजन्, बुद्धि दो प्रकार की होती है, एक गुरु की और दूसरी स्वयं की। बुद्धि से पांच प्रकार के मंत्रों की सिद्धि होती है। जिस बुद्धि से बैरी छिद्रपूर्ण दिखाई देता है, विद्वान् उसकी साधना करते हैं । संकट के समय भी किंकर्तव्यमूढ़ता से रहित पौरुष के द्वारा उत्साह शक्ति सिद्ध होती है। हे देव, कोष और दंड से प्रभु की शक्ति सिद्ध होती है, इसके बिना धरतीतल की रक्षा कैसे की जा सकती है ? और भी, हे पृथ्वी के स्वामी, जिनसे लाभ प्राप्त नहीं किया गया है, ऐसे चार उपायों को जानना चाहिए ! पहला उपाय साम कहा जाता है, प्रिय बचनवाला जो जीवों के लिए अत्यन्त सुन्दर लगता है। दूसरे भेद उपाय को स्वीकार करना चाहिए । इसके द्वारा शत्रुओं से विरक्त लोगों का सम्मान करके उसका भेदन करना चाहिए। पत्ता-ये लोभी और जड़ होते हैं, अपमान ही इनकी निधि है । ये डरपोक होते हैं, ये रक्षा करनेवाले अपने राजा और विपक्ष का दुश्चरित बता देते हैं। हाथी, अश्व, स्वर्ण, रत्न का दान करना चाहिए। यदि कोई स्वजन मिल जाता है, तो अवश्य देना चाहिए। और देश, पुर, ग्राम को जलानेवाला अपकार भी करना चाहिए, उसे श्रेष्ठ (16) 1. A कोसु दंडेहि । 2 A जाणेब्या; ? जाणेव । 3. AP रित्तिणाह। 4. A विडिय। (17) 1. AP हेमु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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