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________________ 70. 15.11] महाकइ-पुस्फयंत विरहयज महापुरा घत्ता - जो मोर्णे चिरु संचरइ वणि सो संपइ महुसेविरु ॥ कोइल" पुण वि पुण वि लवइ मत्तउ कोण पलाविरु ||14|| 15 वज्जइ वीणा पिज्जइ पाणं गिज्जव महरं सत्तसरालं परिमलपउरं पोसियरामं rasia छवियारे सुपर' दवणयविरइय गेहे संधइ कामो कुसुमखुरपं अणिज्जइ रूसति पियल्ली सरजलकेलीसित्तसरीरो तिम्म पण इणिसुमक डिल्लो कुवलयमालाताडपल लियउ इच्छामाणिकता कतो" पिचित्त साहणं । दढपेम्मं पसरइ असरालं । बज्झइ फुल्लियमल्लियदामं । णेवर कलरवणच्चियमोरे । पुप्फत्थरणे भमियदुरेहे । णास तावसतवमाहप्पं । दाविज्जइ कंदप्पसुहेल्ली । विमुक्ककुंकुमणीरो । दिट्ठावयववूढरसिल्लो® । फुल्लला सदुमिहि पज्जलिय । एव वियंभइ जाम वसंतो [57 5 10 पत्ता- जो अभी तक वन में बहुत समय से मौन था, वह कोकिल इस समय मधु का सेवन करने लगा और बार-बार सुन्दर आलाप करने लगा। इस दुनिया में मतवाला कौन नहीं प्रलाप करता ? (15) वीणा बजने लगती है । मदिरापान किया जाने लगता है। प्रियजनों के चित्तों को साधा जाता है। सप्त स्वरों में मधुर गाया जाता है। अपर्याप्त दीर्घ प्रेम फैलने लगता है। परिमल से प्रचुर स्त्रियों का पोषण करने वाली खिली हुई मल्लिका की माला बांधी जाने लगती है। जिसमें सुगंधित द्रव्यों के समुच्चय का छिड़काव किया गया है, और नूपुरों के समान शब्द वाले मयूर नृत्य कर रहे हैं, जिसमें भ्रमर घूम रहे हैं ऐसे द्रवण लताओं से रहित घर में। पर प्रेमी जनों के द्वारा सोया जाता है। रूठी हुई प्यारी को मनाया जाता है, और उसे काम पीड़ा पुष्प - शय्या का सुख दिखाया जाता है। जिसमें सरोवर की जलक्रीड़ा से शरीर सींचा गया है, जिसमें यन्त्रों से छोड़ा गया केशर मिश्रित पानी है, जिसमें प्रणयिनी स्त्रियों के सूक्ष्म कटिवस्त्र गीले हो गये है, जो दिखाई देनेवाले अवयवों से बढ़े हुए वृक्षों वाला है, जो कुबलय मालाओं के मारे जाने की क्रीड़ा से युक्त है, जो खिले हुए पलाशों के वृक्षों से जल रहा है, जिसमें पति-पत्नी अपनी इच्छाओं को मना रहे हैं, ऐसा वसन्त बढ़ने लगता है । 11. A कोकिलु । ( 15 ) 1. A गंधकुडंनय " 1 2. AP जेउर 13. A सुपय । 4. P खुहत्यं । 5. A णिम्मिय; P तिमि 16. P वयवसु बुड्ढरसिल्लो। 7. A ललिओ । 8. A दुमेहिणं जलिओ P "दुमेह णं जलियउ । 9. A इच्छिय; P इच्छए ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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