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________________ 421 [69.34.9 महाकषि पृष्पगत विरचित महापुराण महिकं ठाणहु बिहडियउं आयासह आसणु णिवडियउं। णहफलिहखभचुउ चूरियउ वसु चुण्णु चुण्णु मुसुमूरियउ। पत्ता-णियमित्तहो मरणेण पव्वउ थिउ विच्छायज ।। पडियउ गरयणिवासि वसु असच्चु संजायउ ।। 34।। 10 35 पुणु दणुएं मायाभाउ किउ वसु दाविउ सम्गविमाणि थिउ । ता सयरमंति आणंदियउ महि जण्ण कि णिदियउ । पुणु तेण वि. रायसूज रइउ दिणयरदेवें खयरें लइउ । णिवमासहोमु विद्ध सियउ महकालवियंभिउ णासियउ । णारययिउल्लउ तोसियउं अमरारें पुणरवि घोसियउं । मा णासहि पब्वय कहिं मि तुहुँ। मंतीसर माणहि अमरसुहं 1 जिबिंबइंचउदिसु यहि तिह खेयरविज्जाउ ण एंति जिह । ता ते सिट्ठउं तेहउं करिवि गय णरयविवरि' बिपिण वि मरिवि । महिसिौ लोयह भासियउं अप्पाणउं वइस मइ साहियां । देहिहि दुक्खावहु धम्मु कहिं पलु खज्जइ पिज्जइ मज्जु जहिं। 10 उससे प्रवर धरती कांप गई। भूकम्प आ गया। अपने स्थान से विघटित होकर आकाश से (राजा वसु का) आसन गिर गया। स्फटिक मणि के खम्भे चूर-चूर हो गये। राजा वसु चकनाचूर हो गया। पत्ता-अपने मित्र की मृत्यु से पर्वतक एकदम उदासीन हो गया। राजा वसु नरक निवास में जा पड़ा और वह असत्य प्रमाणित हुआ। 35 उस दनुज ने फिर मायावी आचरण किया। जब उसने राजा को स्वर्ग विमान में स्थित दिखाया, तो सगरमंत्री आनंदित हो उठा (और बोला) कि मूखों ने यज्ञ की निंदा क्यों की? फिर उसने भी राजसूय यज्ञ किया जैसा कि दिनकर देव विद्याधर ने स्वीकार कर लिया था। नप मास का होम ध्वस्त हो गया और महिषासुर का विस्तार नष्ट हो गया। नारद का हृदय संतुष्ट हो गया। दैत्य ने पुनः घोषित किया हे पर्वतक, तुम कहीं मत जाओ। हे मंत्रीश्वर, तुम भी स्वर्ग-सुख मानो। तुम चारों ओर जिन प्रतिमाओं को इस प्रकार स्थापित करो कि जिससे विद्याधरों को विद्याएँ यहाँ न आएँ । तब उसने जैसा कहा या वैसा किया। वे दोनों सरकर नरक गये । महिषेद्र ने लोगों से कहा कि मैंने अपने वैर का बदला ले लिया है। जहां शरीरधारियों को सताया जाता है, मांस खाया जाता है, मद्य पिया जाता है, वहाँ धर्म कहाँ ? लेकिन तप के द्वारा 5. A महिकर। 6. A विडियउ। 7. A फलिहमज खंभु धुन चूरियज । (35) 1. P"विवाणि 1 2. AP जि ! 3. A लवित । 4. A गरयधोरि ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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