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________________ 69.34.8] महाक-पृष्फर्यत-बिरामद महापुराण [41 कि बहुवे पण वि मंति भणइ जो पम् अपाण' सम गणइ । 10 णिग्गंथु णियत्थु वि परिभमउ छुडु मोहु लोहु मच्छरु समउ । सो पावद तं सिद्धत्त किह रसविद्ध, धाउ हेमत्त जिह । पत्ता---हिंसारंभु वि धम्मु वयणु असच्चु वि सुंदरु ।। जणु" धुत्तहि दढमूहु किजइ काल पंडुरु ।।33।। 34 जबहोमें संतियम्मु कहिङ जंतं पइ छलएहि गहिउ । अय जब जि पयरिय हुँति गउ पई लंधिउं तायहु वयणु कउ । गिरि घोसइ गुरुणा पिसुणियउं तें तइयतुं वसुणा णिसुणियउँ । ता णारउ पब्बउ रुद्दधयः तावस सावित्थिहि झ त्ति गय । पव्वयजणणिइ अब्भत्थियउ वरकालु एह पहु पत्थियउ। जइ सुंअरहि भासिउ अप्पण तो थबहि वयणु भाइहि तणउं । तं अम्महि भासिउं परिगणिउं अय जब ण होति तेण वि भणित्रं । जं चविउ असञ्चु सुदुच्चरित तं सधरु धरायलु थरहरिउ । हैं तो वृषभ और कागराज भी बड़े-बड़े देवता होते। बहुत कहने से क्या, मंत्री कहता है कि जो दूसरे को अपने समान समझता है, जो परिग्रह से रहित है, निर्वस्त्र है, विहार करता रहता है, और जो मोह, लोभ, ईर्ष्या को शान्त करता है, वह उसी प्रकार सिद्धि को प्राप्त होता है, जिस प्रकार रस से सिद्ध धातु स्वर्णत्व को प्राप्त करती है। घत्ता-हिंसा का प्रारम्भ करना धर्म है, और असत्यवचन भी सुन्दर है, इस प्रकार धूर्त लोगों के द्वारा मूर्ख और भी मूर्ख बनाया जाता है, तथा काले का पीला किया जाता है। और जो तुमने यज्ञ में होम करने से शांति कर्म कहा और जो तुमने अज शब्द को बकरों के रूप में ग्रहण किया। बोये जाने पर जो जौ उत्पन्न नहीं होते थे अज कहलाये जाते हैं। इस प्रकार तुमने अपने पिता के वचनों का उल्लंघन किया है। गुरु के द्वारा कहे गये बचन की पहाड़ भी घोषणा करता है उसे उसी प्रकार राजा वसु ने भी सुन लिया। तब अपने हाथ में रुद्राक्ष माला लिये हुए नारद और पर्वतक शीघ्र ही श्रावस्ती गये । पर्वतक की मां ने यह प्रार्थना की कि यह बर मांगने का समय है, और राजा से प्रार्थना की कि यदि आप अपने कहे हुए की याद करते हैं तो आप अपने भाई के (पर्वतक के) वचन को स्थापित करो। मां के द्वारा कहा गया उसने मान लिया। अज जो नहीं होते ऐसा उसने भी कह दिया । उसने जो असत्य और दुष्ट का कथन किया, 7. AP अप्पाणें । 8. AP लोह मोहु । 9. A सिद्धतु । 10. AF जगु । (34) 1. P कहिल। 2.A तं । 3.A रुद्धवय । 4.A मासिउप्पण्णउ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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