SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 221 महाकवि पुष्पबन्त विरचित महापुराण 169.12.1 12 करगेज्झु मज्डं उन गणि सहं सुबल' णाम बेल्लह धरिणि-1 सिविणंतरि पेच्छइ उग्गमिउ रवि सहसकिरणु पयलि भमिउ । ससि कुमयकोसवित्थारयरु गज्जंतु जलहि जुज्झियमयरु । सुविहाणइ कतहु भासियउं तेण वि तहु गुज्झु पयासियउँ । तुह होसइ सणुरुहु सीरहरू हलि चरमदेहु णं तित्थया । अण्णहि दिणि सग्गहु अवयरिज सुरु कणयचूलु उयरइ धरिउ । मपरिक्खयदि गीरयदिसिहि । फरगुणि तमकालिहि तेरसिहि। देविइ णवमासहि सृउ जणिउ । तणुरामु रामु राएं भगिउ । करिवरलोयिपव्वालियउ" सिविणतरि सीह णिहालियउ। माहहु मासहु सियपढमदिणि सविसाहि जसाहिउ पहु भुवणि" । मणिचूलु देउ दसरहरया सुउ अवरुवि जायउ केक्कयइ। जोइउ लक्खणलखंकियउ सो ताएं लक्खणु कोक्कियउ। घत्ता-बेण्णि वि ते गुणवंत भुयबलतासियदिग्गय ।। णाई सियासियपक्ख पत्थिवगरुडहु णिग्गय ।12।। 10 (12) उसकी सुबला नाम की प्रिय गृहिणी थी। ऊँचे पयोधरों वाली जिसका मध्य भाग मुट्ठी से पकड़ा जा सकता है। एक रात वह स्वप्न में देखती है कि उगा हुआ हजारों किरणोंवाला सूर्य आकाश तल में घूम रहा है। उसने देखा कुमुदों के कोषों का विस्तार करने वाला चन्द्रमा, गरजते हुए समुद्र में लड़ना हुआ मीन युगल । दूसरे दिन सुन्दर प्रभात में उसने पति से यह बात कही। उसने भी उसका रहस्य उसे बताया कि तुम्हारा बलभद्र हलधर चरम शरीरी पुत्र होगा। वैसे हो जैसे तीर्थकर। दूसरे दिन स्वर्ग से अवतरित हुए स्वर्णचूल देव को उस रानी ने अपने पेट में धारण किया। जब चन्द्रमा मघा नक्षत्र में स्थित था, दिशा निर्मल थी, ऐसी फागुन वदी तेरस को नौ माह पूरे होने पर देवी ने पुत्र को जन्म दिया। शरीर से सुन्दर होने के कारण राजा ने उसका नाम राम रखा। फिर कैकयी ने गजवर के रक्त से लिप्त सिंह को स्वप्न में देखा,। माघ मास में विशाखा नक्षत्र से युक्त शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन राजप्रासाद में दशरथ में अनुरक्त कैकयी से मणिचूल नाम का देव दूसरे पुत्र के रूप में हुआ। पिता ने उसे लाखों लक्षणों से युक्त देखकर उसका नाम लक्ष्मण रख दिया। __घत्ता-गुणवान अपने बाहुबल से दिग्गजों को सताने वाले वे दोनों ऐसे मालूम होते थे मानो दशरथ राजा रूपी गरुड़ के काले और सफेद दो पंख निकल आये हों। (12) 1. A सुकल । 2. AP रमणि। 3. AP सुउ। 4.A उयरे; P उबरें। 5.A'रिक्खे चंदे; P 'रिक्खि इंदे । 6. P पच्चालियउ । 7. P सुविणंतरि। 8. AP सविसाहु । 9. AP मणि। 10. P जायच अवरु चि.।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy